कबूतर आ..आ..आ..., कई परिवारों का भरण-पोषण कर रहे यह पक्षी

कबूतर आ..आ..आ..., कई परिवारों का भरण-पोषण कर रहे यह पक्षी

जंगपुरा में दाना चुगते हुए कबूतर।

नई दिल्ली:

लंदन में प्रदूषण की जांच के लिए कबूतरों का इस्तेमाल किया जाता है, तो फिल्मों में कबूतरों को कई अलग-अलग भूमिकाओं में दिखाया गया है, कभी पोस्टमैन बनकर खत लेते हुए तो कभी फिल्म के बैकग्राउंड की शोभा बढ़ाते हुए। लेकिन जिन कबूतरों की बारे में मैं बता रहा हूं वह कोई लंदन या फिल्मों के कबूतर नहीं हैं बल्कि दिल्ली के कबूतर हैं। इनकी वजह से कई परिवारों को दाना-पानी मिल रहा है। अगर यहां कबूतर न होते तो शायद इन परिवारों के बच्चे स्कूल न जा पाते।

 

कबूतरों की वजह से विजय राणा जिंदगी की जंग में विजयी
दिल्ली में कई ऐसी जगह हैं जहां हजारों की संख्या में कबूतर एक जगह इकट्ठे होते नजर आएंगे। यह कबूतर दाना-पानी की तलाश में आते हैं, लेकिन इनकी वजह से कई परिवारों को भी दाना-पानी मिल रहा है। इन कबूतरों को दाना खिलाना के लिए कई लोग इन स्थानों पर जमा होते हैं।

इन कबूतरों ने विजय राणा की किस्मत बदल दी है। विजय के पास कोई नौकरी नहीं थी। परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। बच्चों को स्कूल भी भेजना था, लेकिन रोजगार नहीं था। इन कबूतरों की वजह से विजय को गुजर-बसर के लिए रास्ता मिला। विजय जंगपुरा के फ्लाईओवर के पास कबूतरों के लिए दाना बेचते हैं और रोज 300 से 400 रुपये तक कमा लेते हैं। इससे अब उनका परिवार चल रहा है और बच्चे स्कूल भी जा रहे हैं।

 

हेलमेट के धंधे में हुआ नुकसान, कबूतर बन गए सहारा
बिहार के पूर्णिया जिले के सुरेश कुमार अपनी किस्मत बदलने के लिए दिल्ली आए थे। वह बदरपुर में सात साल तक हेलमेट बेचने का काम करने के बाद बिहार लौटना चाहते थे क्योंकि इस धंधे में उनका कोई फायदा नहीं हो रहा था। लेकिन कबूतरों की वजह से सुरेश की किस्मत बदल गई। एक दिन जब सुरेश सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम के पास से गुजर रहे थे, तो वहां उन्हें बहुत सारे कबूतर दिखाई दिए। सुरेश ने वहां कबूतरों का दाना बेचना शुरू कर दिया। अब सुरेश हर महीने 8000 से 10000 रुपये तक कमा लेते हैं। सुरेश के बड़े भाई भी चितरंजन पार्क में कबूतरों का दाना बेच रहे हैं। इन दोनों भाइयों की कमाई से उनका परिवार ठीक चल रहा है।
 

दिल्ली ऐसी कई जगह हैं जहां कबूतरों के सहारे लोगों का पेट पल रहा है।
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