यह ख़बर 29 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

मोहाली में टिकटों के लिए खिड़की पर लंबी कतार

खास बातें

  • भारत-पाक के बीच सेमीफाइनल मुकाबले के सभी टिकट बिक चुके हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग टिकट की उम्मीद में खिड़की पर कतार लगाए खड़े हैं।
मोहाली:

भारत और पाकिस्तान के बीच बुधवार को पंजाब क्रिकेट संघ (पीसीए) मैदान पर होने वाले आईसीसी विश्व कप-2011 के सेमीफाइनल मुकाबले के सभी टिकट बिक चुके हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग अब भी टिकट की उम्मीद में पीसीए स्टेडियम की टिकट खिड़की पर कतार लगाए खड़े हैं। पीसीए स्टेडियम के गेट संख्या-1 के करीब स्थित 1000 रुपये वाले टिकट काउंटर पर लगभग 500 लोग जमा हैं। उन्हें बताया गया है कि 1000 रुपये की कीमत वाली 1000 टिकटें बेची जानी हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। लोगों को उम्मीद है कि यह टिकट खिड़की बुधवार सुबह से पहले कभी भी खुल सकती है, लेकिन छह दिनों से खिड़की खुली ही नहीं है। 24 मार्च को यह खिड़की अंतिम बार खुली थी और काउंटर से लगभग 1500 टिकट बेचे गए थे। मंडी गोविंदगढ़ से आए चेतन शर्मा ने बताया कि वह चार दिनों से लगातार इस खिड़की के खुलने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक यह खिड़की एक बार भी नहीं खुली है। चेतन ने कहा, मैं अपने दोस्त के पास चंडीगढ़ में रह रहा हूं। मैं रोज सुबह सात बजे यहां आता हूं। चार दिनों से मेरा यहां आने का सिलसिला जारी है, लेकिन यह खिड़की एक बार भी नहीं खुली है। टिकट की चाह रखने वाले 47 वर्षीय सतीश कुमार ने बताया कि उन्हें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली है कि मैच के सभी टिकट बिक चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद वह इस उम्मीद के साथ टिकट खिड़की पर आ रहे हैं कि शायद यह खुले और उन्हें भी स्टेडियम में बैठकर यह हाई-प्रोफाइल मैच देखने का मौका मिल जाए। सतीश ने कहा, हम 1000 रुपये वाले टिकट 100,000 रुपये में तो नहीं खरीद सकते। सोचा कि चलो आजमा लेते हैं, किस्मत अच्छी रही तो शायद टिकट मिल जाए, लेकिन 21 तारीख के बाद 250 रुपये कीमत वाली टिकटों की खिड़की खुली ही नहीं। इसके बाद मैंने 1000 रुपये कीमत वाले टिकटों के लिए प्रयास शुरू किया, लेकिन पांच दिनों से चक्कर काटने के बावजूद टिकट नसीब नहीं हुआ है। टिकट की चाह रखने वाले एक अन्य व्यक्ति साहिल बंसल ने बताया कि पांच दिन पहले पीसीए ने 1000 और 250 रुपये वाले काउंटरों पर 'हाउसफुल' का बोर्ड लगा दिया था, लेकिन किसी ने उन्हें हटा दिया। इसके बाद से ही रोजाना लोगों की भीड़ खिड़कियों पर जुटने लगी।


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