मलीहाबाद में जारी है PM मोदी और CM अखिलेश के बीच मुकाबला, लेकिन ये आम हैं, आदमी नहीं...

मलीहाबाद में जारी है PM मोदी और CM अखिलेश के बीच मुकाबला, लेकिन ये आम हैं, आदमी नहीं...

लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में सभी राजनैतिक पार्टियां अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जोरशोर से जुटी हई हैं, लेकिन उससे कई महीने पहले ही 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी' और राज्य के 'मुख्यमंत्री अखिलेश यादव' के बीच एक अलग ही किस्म का मुकाबला हो रहा है... अलग इसलिए, क्योंकि ये किस्में हैं 'फलों के राजा' कहे जाने वाले आम की...

राजधानी लखनऊ से लगभग 35 किलोमीटर दूर बसे कस्बे मलीहाबाद में है कलीमुद्दीन खान की अमराई (आम की बगीचा), जहां 'पीएम' और 'सीएम' के बीच यह मुकाबला हो रहा है... अपने आमों के बारे में बात करते हुए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित 75-वर्षीय कलीमुद्दीन 'सावधान' भाषा में कहते हैं, "मुझे कहना पड़ेगा, मोदी आम के मुकाबले अखिलेश आम कहीं ज़्यादा मीठा है, लेकिन मोदी आम के स्वाद का तो जवाब ही नहीं..."

हालांकि कुछ लोग शायद कहें कि कलीमुद्दीन साहब राज्य के चुनावी माहौल का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कलीमुद्दीन खान का कहना है, "अगर मेरा मकसद लोकप्रियता हासिल करना होता, तो मैं इन आमों के नाम अपने बेटों के नाम पर रखता... मेरा इरादा उन लोगों की खूबसूरती को सबके सामने लाना है, जिन पर इन आमों के नाम रखे गए..."
 


चार एकड़ में फैले उनके बगीचे में 'अखिलेश' बिल्कुल नई किस्म है... पिछले साल यहां की खास पेशकश 'मोदी' आम था...

कलीमुद्दीन खान को वर्ष 2008 में आमों की सैकड़ों किस्में विकसित करने के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाज़ा गया था... उन्होंने एक ही पेड़ से 300 अलग-अलग किस्में हासिल करने का कारनामा भी दिखाया है... कलीमुद्दीन खान आम उगाने के 300 साल पुराने अपने खानदानी पेशे में वर्ष 1957 में शामिल हुए थे, जब वह सातवीं जमात के इम्तिहान में फेल हो गए थे...

...और अब उनका बगीचे को देखने के लिए उत्तर प्रदेश में आने वाली बहुत-सी देशी-विदेशी हस्तियां भी आती रहती हैं... सालों से उनके बगीचे को देखने के लिए राज्यपाल और मुख्यमंत्री आते रहे हैं, और उनके बगीचे के आम भी दूर-दूर तक भेजे जाते हैं...
 

दोपहर की नमाज़ अदा करने के लिए बैठने से पहले कलीमुद्दीन खान ने बताया, "मैं चाहता हूं, लोग मुझे मोहब्बत के साथ याद करें... मैं शर्तिया अपने आमों के लिए याद किया जाऊंगा, लेकिन मेरी ख्वाहिश है कि मुझे अच्छे इंसान के तौर पर याद किया जाए..."

कलीमुद्दीन खान को सिर्फ एक ही बात का अफसोस होता है... वह है ज़मीनी पानी का घटता स्तर और बढ़ता प्रदूषण, जिसकी वजह से अब मलीहाबाद में सिर्फ 700 किस्म के ही आम पाए जाते हैं, जबकि वर्ष 1919 में यहां 1,300 किस्म के आम मिलते थे...

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