यह ख़बर 06 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

संघ ने 64 साल बाद बदला ड्रेस कोड

खास बातें

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कार्यकर्ताओं के ड्रेस कोड में 64 साल बाद कुछ बदलाव करते हुए चमड़े की जगह कृत्रिम बेल्ट को अपनाने का फैसला किया है, लेकिन खाकी निक्कर को पैंट में बदलने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
New Delhi:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कार्यकर्ताओं के ड्रेस कोड में 64 साल बाद कुछ बदलाव करते हुए चमड़े की जगह कृत्रिम बेल्ट को अपनाने का फैसला किया है, लेकिन खाकी निक्कर को पैंट में बदलने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ मनमोहन वैद्य ने बताया, यह बदलाव इस साल मई-जून में संघ शिक्षा वर्ग के आयोजन से लागू होगा। चमड़े की जगह कृत्रिम बेल्ट के साथ उसका बकल भी अब तांबे की बजाय स्टील का होगा। यह पूछे जाने पर कि संघ ने बेल्ट के अलावा यूनिफार्म में क्या कोई अन्य बदलाव भी किया है, मसलन हाफ पैंट की बजाय क्या फुल पैंट पहनने की अनुमति होगी, जिसकी काफी समय से कुछ कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं, वैद्य ने कहा, बेल्ट के अलावा कोई अन्य परिवर्तन नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि अभी तक संघ के लोग चमड़े की जो बेल्ट लगाते थे, उन्हें खासतौर पर कानपुर की उन टेनरियों से लिया जाता था, जहां वध किए गए जानवरों की खाल का प्रयोग नहीं होता है। उन्होंने कहा, संघ ने हमेशा यह शर्त रखी कि उसे आपूर्ति की जाने वाली बेल्ट वध किए गए जानवरों की खाल से नहीं बनी होनी चाहिए। चमड़े की बजाय कृत्रिम पदार्थ की बेल्ट के बदलाव का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि कुछ सदस्यों, विशेषत: जैन समुदाय के लोगों को चमड़े की बेल्ट पर आपत्ति थी। वे इसे पहनने में असहज महसूस करते थे, भले ही ये बेल्ट वध किए गए जानवरों की खाल से नहीं बनी होतीं। संघ के मंचों से ऐसे सदस्यों की ओर से अक्सर आग्रह होता था कि चमड़े की बेल्ट की जगह कृत्रिम पदार्थ की बेल्ट ली जाए। वैद्य ने कहा कि चमड़े की जगह अब कृत्रिम विकल्प आसानी से उपलब्ध होने के कारण हमने इस बदलाव का निर्णय किया है। इससे जो लोग चमड़े की बेल्ट पहनने में हिचक महसूस करते थे, वे अब सहज महसूस करेंगे और संघ की भी खास टेनरियों पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। संघ के ड्रेस कोड में सबसे पहला परिवर्तन 1940 में किया गया था। वैद्य ने बताया कि ब्रिटिश काल में हाफ पैंट और कमीज दोनों खाकी रंग की हुआ करती थीं और कमीज पर आरएसएस अंकित तांबे का बिल्ला लगा रहता था। 1940 इसमें परिवर्तन करके कमीज को खाकी की बजाय सफेद कर दिया गया। उन्होंने कहा, खाकी हाफ पैंट और खाकी कमीज की बजाय खाकी हाफ पैंट के साथ सफेद कमीज अधिक सुरूचिपूर्ण लगता है। प्रचार प्रमुख ने बताया कि दूसरा परिवर्तन 1947 में किया गया। तब तक संघ कार्यकर्ता शाखाओं में एड़ी से ऊंचे लॉन्ग बूट पहनते थे। तब लॉन्ग बूट की बजाय सामान्य काले जूते कर दिए गए और अब 64 वर्ष बाद यह तीसरा परिवर्तन हुआ है। उन्होंने कहा, संघ हमेशा परिवर्तन के पक्ष में रहा है। जब भी परिवर्तन की आवश्यकता होती है, संघ अपने को परिवर्तित करता है।


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