कौन हैं वजीर राम सिंह पठानिया? जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने किया भरी सभा में याद

पीएम मोदी ने हिमाचल प्रदेश में वजीर राम सिंह पठानिया का नाम लिया. क्या आप जानते हैं कि आखिर कौन हैं ये वजीर राम सिंह पठानिया और क्यों उन्होंने इनका नाम लिया?

कौन हैं वजीर राम सिंह पठानिया? जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने किया भरी सभा में याद

हिमाचल प्रदेश में पीएम मोदी ने याद किया वीर सपूत वजीर सिंह पठानिया को.

खास बातें

  • हिमाचल प्रदेश में पीएम मोदी को याद आई राम सिंह पठानिया की.
  • वजीर राम सिंह पठानिया का नाम महान सपूतों में गिना जाता है.
  • 24 साल की उम्र में अंग्रेजों को खदेड़ा था.
नई दिल्ली:

पीएम मोदी ने हिमाचल प्रदेश में वजीर राम सिंह पठानिया का नाम लिया. क्या आप जानते हैं कि आखिर कौन हैं ये वजीर राम सिंह पठानिया और क्यों उन्होंने इनका नाम लिया? आइए हम आपको बताते हैं. वजीर राम सिंह पठानिया का नाम महान सपूतों में गिना जाता है. उन्होंने मुट्ठी भर साथियों के साथ अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी थी. उस वक्त पठानिया की उम्र महज 24 साल थी. इस वीर सपूत का जन्म नूरपुर रियासत के वसीर श्याम सिंह के घर 10 अप्रैल 1824 को हुआ था.  उनके पिता नूरपुर रियासत में राजा वीर सिंह के वजीर थे.

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सेना बनाकर खदेड़ा अंग्रेजों को
कहा जाता है कि 1846 में अंग्रेज-सिख संधि के कारण हिमाचल प्रदेश की अधिकांश रियासतें अंग्रेज साम्राज्य के आधीन हो गई थीं. उसी वक्त राजा वीर सिंह की मौत हो गई. उस वक्त उनके बेटे जवसंत सिंह राजगद्दी के उत्तराधिकारी थे. अंग्रेजों ने जसवंत सिंह के सारे अधिकार पांच हजार रुपए में ले लिए और रियासत में अपने शासन से मिलाने की घोषणा कर दी. जो वीर सिंह पठानिया को मंजूर नहीं था.

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उन्होंने कटोच राजपूतों के साथ मिलकर सेना बनाई और अंग्रेजों पर धावा बोल दिया. इस आक्रामण से अंग्रेज भाग खड़े हुए और राम सिंह ने अपना ध्वज लहरा दिया. इससे खुश होकर जसवंत सिंह ने खुद को राजा नियुक्त करते हुए राम सिंह को अपना वजीर बना लिया. जिसके बाद उन्होंने हिमाचल से सारे अंग्रेजों को उखाड़ फेकने का प्लान बनाया और विजय हासिल की. 

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अंग्रेजों ने किया गिरफ्तार और ऐसे हुई मौत
ये भी कहा जाता है कि अंग्रेजों को भी पता था कि वो राम सिंह को आसानी से नहीं गिरफ्तार या मार सकते हैं. ऐसे में उन्होंने प्लान बनाया और जब राम सिंह पूजा पाठ कर रहे थे तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाकर कालापानी भेज दिया गया. जिसके बाद उन्हें रंगून भेजा गया और उन पर काफी जुल्म किए. 11 नवंबर 1849 को मातृभूमि की रक्षा करते हुए मात्र 24 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए. 


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