यह ख़बर 04 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'स्टम्पी' के सामने 'अप्पू' जैसा बनने की चुनौती

खास बातें

  • क्रिकेट विश्वकप का शुभंकर 'स्टम्पी' काफी हद तक 1982 एशियाई खेलों के शुभंकर 'अप्पू' जैसा है, लेकिन क्या स्टम्पी को अप्पू जैसी लोकप्रियता मिलेगी...
New Delhi:

आईसीसी क्रिकेट विश्वकप-2011 के आधिकारिक शुभंकर 'स्टम्पी' को दुनिया के सामने लाया जा चुका है। 'स्टम्पी' काफी हद तक 1982 एशियाई खेलों के शुभंकर 'अप्पू' जैसा ही है, लेकिन देखने की बात यह होगी कि स्टम्पी को अप्पू जैसी लोकप्रियता मिल पाती है या नहीं। अप्पू देशवासियों की जुबान पर चढ़ गया था। उसके नाम पर दिल्ली में प्रगति मैदान परिसर में अप्पू-घर का निर्माण किया गया था, जहां बच्चे अपने माता-पिता के साथ आकर मौज-मस्ती किया करते थे। अप्पू-घर अब नहीं है। उसे उच्चतम न्यायालय के वकीलों के केबिन बनाने के लिए तोड़ा जा चुका है। अप्पू का भी इंतकाल हो चुका है, लेकिन देशवासी अब तक न तो अप्पू को भूले हैं और न ही अप्पू-घर को। स्टम्पी के सामने अप्पू जैसा लोकप्रिय बनने की चुनौती है। क्रिकेट की लोकप्रियता की आंधी में इस शुभंकर को लोकप्रियता मिल सकती है, लेकिन क्रिकेट मुकाबले जिस तेजी से खेले जा रहे हैं, उन्हें देखते हुए स्टम्पी कुछ वर्षों बाद किताबों में खोकर रह सकता है। ऐसा हो सकता है कि उसे क्रिकेट के जुनूनी भारतीय लोगों के दिलों पर राज करने का मौका न मिल सके। राष्ट्रमंडल खेलों के शुभंकर शेरा को लोगों ने 11 दिनों तक खूब याद किया, लेकिन उसके बाद खेलों से जुड़ी भ्रष्टाचार की खबरों के बीच शेरा कहीं गुम हो गया। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भ्रष्टाचार के लिए फिलहाल कोई जगह नहीं और इस कारण स्टम्पी का हश्र शेरा जैसा होने की आशंका नहीं दिखती, लेकिन वह अप्पू जैसी लोकप्रियता हासिल कर सकेगा, इस पर प्रश्नचिह्न है। स्टम्पी के रूप में आईसीसी ने एक 10 वर्ष के काल्पनिक हाथी को दुनिया के सामने पेश किया है। यह बहुत युवा, दृढ़निश्चयी और उत्साह से भरा है। इसकी जो आधिकारिक तस्वीर जारी की गई है, उसमें इसे क्रिकेट गेंद के साथ दिखाया गया है। इसका अनावरण 2 अप्रैल, 2010 को श्रीलंका में किया गया था। उस समय इसका नामकरण नहीं किया गया था। स्टम्पी नाम, आईसीसी द्वारा दुनिया भर में कराए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण के माध्यम से सामने आया था। आईसीसी ने जुलाई, 2010 में एक ऑनलाइन प्रतियोगिता कराई थी, जिसके माध्यम से प्रशंसकों को अपने शुभंकर का नाम सुझाने को कहा गया था। इसके लिए प्रशंसकों को एक महीने का वक्त दिया गया था। इसके बाद 2 अगस्त, 2010 को आईसीसी न अपने शुभंकर का नाम स्टम्पी रखे जाने की घोषणा की। आईसीसी का मानना है कि स्टम्पी क्रिकेट को दुनिया का सबसे अच्छा खेल मानता है और हमेशा इसी के बारे में सोचता रहता है। इसे गलियों और चौराहों पर क्रिकेट खेलना ज्यादा पसंद है। कोई इसे इजाजत दे तो यह चौबीसों घंटे क्रिकेट में डूबा रह सकता है। यह क्रिकेटरों का बहुत सम्मान करता है। इसके लिए क्रिकेटर हीरो होते हैं और यह उनकी तकनीक और क्षमताओं की बहुत कद्र करता है। महज 10 वर्ष का होने के कारण यह देश और दुनिया के दूसरे बच्चों की तरह एक दिन क्रिकेट विश्व कप में खेलने का सपना संजोता है। कुल मिलाकर यह उन बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनके बूते आज के खिलाड़ियों की लोकप्रियता कायम है और जो एक दिन खुद क्रिकेटर बनकर इस खेल को आगे बढ़ाना चाहते हैं। आईसीसी क्रिकेट विश्व कप की आयोजन समिति ने स्टम्पी को लोकप्रिय बनाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। रिटेल स्टोर बिग-बाजार और अपनी एक खास वेबसाइट के माध्यम से आयोजन समिति ने स्टम्पी सहित विश्व कप से जुड़ी तमाम तरह की मर्चेटाइजिंग की मार्केटिंग शुरू कर दी है। इन स्टोरों और वेबसाइट के माध्यम से अलग-अलग देशों की जर्सियां खरीदने के अलावा प्रशंसक स्टम्पी को भी हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा आयोजन समिति ने विश्व कप के सभी आयोजन स्थलों के हवाई अड्डों पर स्टम्पी की मौजूदगी सुनिश्चित करने का फैसला किया है, जो दुनिया भर से आने वाले क्रिकेट प्रशंसकों का स्वागत करेगा। विश्व कप का आयोजन 19 फरवरी से भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका की संयुक्त मेजबानी में होना है और स्टम्पी इन तीनों देशों में मौजूद रहकर क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ाने का काम करेगा।


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