यह ख़बर 15 मई, 2011 को प्रकाशित हुई थी

यूपी में फिर जगीं कांग्रेसियों की उम्मीदें

खास बातें

  • पश्चिम बंगाल, केरल और असम विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस की उम्मीदें फिर जाग गई लगती हैं, जोकि बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के सफाये के बाद दम तोड़ती नजर आने लगी थीं।
लखनऊ:

पश्चिम बंगाल, केरल और असम विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की उम्मीदें एक बार फिर जाग गई लगती हैं, जोकि बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के सफाये के बाद दम तोड़ती नजर आने लगी थीं। असम, केरल और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और इसके गठबंधनों को मिली शानदार जीत से उत्साहित उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष डॉ रीता बहुगुणा जोशी ने कहा, तीनों राज्यों में जनता ने कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधनों को सत्तारूढ़ करके विपक्षी दलों द्वारा महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर मचाए जा रहे हो-हल्ले की हवा निकाल दी है और कांग्रेस की नीतियों पर अपनी मुहर लगा दी है। तमिलनाडु में संप्रग गठबंधन के घटक डीएमके गठबंधन को मिली हार के बारे में उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हार और तीन राज्यों में जीत से यह बात साफ हो गई है कि जनता भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस की नीति एवं कदमों के साथ है और वह इन सवालों का विरोधी दलों के हमले का अर्थ अच्छी तरह समझने लगी है। पार्टी प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने कहा कि तीन राज्यों में कांग्रेस और इसके गठबंधन को जिताने वाली जनता ने तमिलनाडु में विपरीत परिणाम देकर यह जता दिया है कि वह भ्रष्टाचार के आरोपों की हकीकत जानती है कि असली दोषी कौन है। उन्होंने यह भी कहा कि लोकपाल विधेयक को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे की मुहिम शुरू होने से पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस मुद्दे पर पार्टी की स्पष्ट नीति और नीयत जाहिर कर दी थी और तीन राज्यों में पार्टी को मिली जीत से साबित हो गया है कि यह बात जनता तक पहुंच चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में से 22 सीटों पर मिली जीत से पार्टी के हौसले बुलंद हो गए थे और पार्टी नेताओं ने उन परिणामों को 20 साल बाद देश के इस सबसे बड़े राज्य में मिशन 2012 में कामयाबी के संकेत के रूप में देखना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी को मिली आशातीत सफलता के कारण जो भी रहे हों, पार्टी नेताओं ने इसे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के करिश्मे के रूप में प्रचारित किया था, मगर बिहार विधानसभा चुनावों में राहुल के आगे बढ़कर सक्रिय चुनाव प्रचार के बावजूद पार्टी को मिली शर्मनाक हार से उनके करिश्मे पर सवालिया निशान लग गए थे। उसी के साथ प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं के चेहरे मुरझा से गए थे।


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