यह ख़बर 16 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

163 साल की उम्र में दिवंगत हुई तार सेवा आखिर क्या थी...?

खास बातें

  • 163 वर्ष पुरानी तार सेवा समाप्त हो गई, लेकिन आज के युवा तो इससे वैसे ही अनजान है, और यह तक नहीं जानते कि तार वास्तव में क्या था... आइए, जानते हैं...
रायपुर:

163 वर्ष पुरानी तार सेवा भारत में समाप्त हो गई, पर आज की युवा पीढ़ी तो इससे वैसे ही अनजान है, और यह तक नहीं जानती कि तार वास्तव में क्या था और इसे भेजा कैसे जाता था... नई पीढ़ी शायद इस बात पर भी यकीन न करे कि डाकिया जब तार लेकर किसी के दरवाजे पर आता था, तो लोगों के दिलों की धड़कन तेज हो जाती थीं...

तार क्या था और इसे भेजा कैसे जाता था, इस संबंध में पड़ताल करने पर डाकघर के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि जिस तरह शहरों का टेलीफोन कोड (एसटीडी कोड) होता है, उसी तरह टेलीग्राम करने के लिए जिलों व शहरों का टेलीग्राम कोड भी हुआ करता था... यह टेलीग्राम कोड छह अक्षरों का होता था... टेलीग्राम करने के लिए प्रेषक अपना नाम, संदेश और प्राप्तकर्ता का पता आवेदन पत्र पर लिखकर देता था, जिसे टेलीग्राम मशीन पर अंकित किया जाता था और शहरों के कोड के हिसाब से प्राप्तकर्ता के पते तक भेजा जाता था...

उन्होंने बताया कि टेलीग्राम करने के लिए पहले मोर्स कोड का इस्तेमाल हुआ करता था... विभाग के सभी सेंटर एक तार से जुड़े थे... मोर्स कोड के तहत अंग्रेजी के अक्षरों व गिनती के अंकों का डॉट (.) व डैश (-) में सांकेतिक कोड बनाया गया था, तथा सभी टेलीग्राम केंद्रों पर एक मशीन लगी होती थी... जिस गांव या शहर में टेलीग्राम करना होता था, उसके जिले या शहर के केंद्र पर सांकेतिक कोड से संदेश लिखवाया जाता था... मशीन के माध्यम से संबंधित जिले या शहर के केंद्र पर एक घंटी बजती थी, जिससे तार मिलने की जानकारी प्राप्त होती थी और सूचना तार के माध्यम से केंद्र पर पहुंचती थी... घंटी के सांकेतिक कोड को सुनकर कर्मचारी प्रेषक द्वारा भेजे गए संदेश को लिख लेता था... गड़बड़ी की आशंका के चलते टेलीग्राम संदेश बहुत छोटा होता था... संदेश नोट करने के बाद डाकिया उसे संबंधित व्यक्ति तक पहुंचाता था...

टेलीग्राम या तार अक्सर मृत्यु या किसी की तबीयत ज़्यादा खराब होने की जानकारी देने के लिए ही की जाती थी, और इसीलिए जब किसी घर में डाकिया तार लेकर आता था, तो लोगों के दिलों की धड़कनें तेज हो जाती थी और कई बार तो बगैर तार पढ़े ही लोग रोना शुरू कर देते थे...

डाकघर अधिकारियों के अनुसार, तार सेवा सेना और पुलिस के साथ ही खुफिया विभाग के लिए बेहद उपयोगी थी... तत्काल संदेश पहुंचाने और गोपनीयता बरकरार रहने की वजह से सेना और पुलिस के साथ ही खुफिया संदेश भेजने के इच्छुक लोग इसका प्रयोग किया करते थे...

आज भी कई लोगों के पास तार के माध्यम से प्राप्त संदेश सुरक्षित हैं... डाकघर अधिकारियों ने बताया कि टेलीग्राम बंद होने की सूचना मिलने के बाद भी कुछ ही लोगों ने तार करने में रुचि ली... दिल्ली में हालांकि आखिरी दिन करीब 20,000 लोगों ने अपने प्रियजनों को तार भेजकर अपना शौक पूरा किया...

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ज़माना बदला, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की तरक्की की बदौलत संचार सुविधाएं बढ़ गई हैं और लोगों को अब मोबाइल और इंटरनेट से ही संदेश भेजना अच्छा लगता है, लेकिन जिन्होंने तार या पत्र भेजा है, उनके लिए निश्चित रूप से तार सेवा का महत्व आज भी बरकरार है... कई बूढ़े-बुजुर्गो की यादें तार से जुड़ी होंगी... ज़रा, उनसे भी पूछ लीजिए...