यह ख़बर 11 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

जम्मू-कश्मीर में बन रहा है दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल

चनाब नदी पर रियासी में बना सलाल हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट डैम

कौड़ी:

भारतीय इंजीनियर हिमालय पर्वतशृंखला में दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं, और माना जा रहा है कि वर्ष 2016 में पूरा होने पर यह रेलवे पुल फ्रांस की राजधानी पेरिस में बने एफिल टॉवर की तुलना में भी 35 मीटर ऊंचा होगा। चिनाब नदी पर चाप की शक्ल में (arch-shaped) बनने जा रहे स्टील के इस पुल को जम्मू एवं कश्मीर राज्य के खूबसूरत पहाड़ी इलाकों को जोड़ने के लिए बनाया जा रहा है।

पूरा हो जाने पर इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर (1,177 फुट) रहने का अनुमान है, और इस तरह यह पुल मौजूदा सबसे ऊंचा पुल होने के चीन के गीझू प्रांत में बेइपानजियांग नदी पर बने 275 मीटर ऊंचे पुल का रिकॉर्ड तोड़ देगा।

भारतीय रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "इंजीनियरों की कला का उत्कृष्ट नमूना है यह पुल... हमें उम्मीद है कि हम इसे दिसंबर, 2016 से पहले तैयार कर लेंगे... इसका डिज़ाइन इस प्रकार का रखा जाएगा कि यह भूकम्पीय गतिविधियों तथा बेहद तेज़ बहाव वाली हवा को झेल सकेगा..."

इस पुल पर वर्ष 2002 में काम शुरू हो गया था, परन्तु सुरक्षा तथा क्षेत्र में चलने वाली बेहद तेज़ हवा को ध्यान में रखते हुए इसे वर्ष 2008 में रोक दिया गया था, और फिर इस पर दो साल बाद काम शुरू हुआ। भारतीय रेलवे की सहायक कंपनी कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन द्वारा संचालित की जा रही इस परियोजना की अनुमानित लागत नौ करोड़ 20 लाख अमेरिकी डॉलर है।

दुनिया का सबसे ऊंचा यह पुल बारामूला को जम्मू से जोड़ेगा, और इस पुल के बन जाने के बाद वर्तमान में लगभग 13 घंटे का यह सफर आधा, यानि साढ़े छह घंटे का रह जाएगा।

परियोजना से जुड़े इंजीनियरों के अनुसार, "पुल की मुख्य चाप को दो केबल क्रेन के सहारे बनाया जा रहा है, और ये केबल क्रेन नदी के दोनों किनारों से स्टील के बड़े-बड़े पायलॉन से जुड़ी हैं... इंजीनियरों ने बताया कि 1,315 मीटर लम्बे इस पुल के निर्माण में लगभग 25,000 टन स्टील लगेगा, जिसमें से कुछ हिस्सा दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण हेलीकॉप्टरों के जरिये पहुंचाया जाएगा..."

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रेलवे अधिकारियों के अनुसार, "इस पुल के निर्माण में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी, नदी का प्रवाह रोके बिना पुल बनाना... पुल की नींव का काम करने से पहले मुश्किल इलाका होने के कारण हमें एप्रोच रोड बनानी पड़ीं..."