Blogs | रवीश कुमार |बुधवार फ़रवरी 21, 2018 10:24 PM IST जब नोटबंदी के लिए बैंक के कर्मचारी रात रात भर जाग रहे थे तब किसी ने नहीं कहा कि सरकारी बैंकों को प्राइवेट हाथों में बेच दो. जब लाखों बैंक कर्मचारी अपने काम से अतिरिक्त समय निकाल कर जनधन के लाखों खाते खोल रहे थे तब किसी ने नहीं कहा कि ये नकारे हैं, बोझ हैं, इन बैंकों को प्राइवेट हाथों में बेच दो. जब कई प्रकार की प्रधानमंत्री बीमा योजनाएं, मनरेगा से लेकर वृद्धा पेंशन के खातों में 200 से 1000 रुपये खाते में जमा किए जा रहे थे तब किसी ने नहीं कहा कि सरकार बैंक के कर्मचारी नकारे हैं, इन बैंकों को बेच दो.