India | Reported by: मनीष कुमार, Edited by: पवन पांडे |रविवार जुलाई 19, 2020 09:35 AM IST कोरोना वायरस (coronavirus) से बिहार में स्थिति दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं. इसका अंदाज़ा आप तीन बातों से लगा सकते हैं. पहला हर दिन जांच की संख्या और पॉज़िटिव पाए जाने वाले मरीज़ों का प्रतिशत लगभग पंद्रह प्रतिशत से ऊपर है. हालांकि राज्य सरकार के तरफ़ से इस आंकड़े को हर दिन उलट-पलट कर पेश किया जाता है ताकि लोगों में भ्रम बना रहे. दूसरा, जांच की क्या गति है- कई जिलो में सैम्पल जांच के अभाव में या ख़राब हो जाते हैं या जांच की रिपोर्ट तीन से पांच दिन में आती हैं. तीसरी राज्य में मुख्य राजनीतिक दल भाजपा के दफ़्तर को इसलिए सील करना पड़ा क्योंकि वहां 70 से अधिक व्यक्ति संक्रमित पाये गये और खुद उनके राज्य इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल फ़िलहाल पॉज़िटिव पाये जाने पर अस्पताल में भर्ती हैं.
यही नहीं, बिहार सरकार का कोई भी, किसी भी स्तर का अधिकारी हो, मंत्री हो या अन्य दल के नेता कोई भी बिहार सरकार के अस्पताल में अपना इलाज नहीं कराना चाहते बल्कि सब एम्स पटना में अपनी पहुंच और पद के आधार पर भर्ती हो रहे हैं, जो यह साबित करता है कि बिहार की स्वास्थ्य सेवा और अस्पताल की हालत कितनी ख़राब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सम्बंधी के इलाज लिए भी AIIMS पटना जाना बेहतर समझते हैं.
इस बीच, यह सवाल उठता है कि क्या कारण है कि आख़िर केंद्र को अपनी विशेष टीम रविवार को पटना भेजनी पड़ी और वर्तमान स्थिति के लिए आख़िर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कैसे दोषी हैं. उनके ऊपर हर दिन विपक्ष जो आरोप लगाता है आख़िर वो कितना जायज़ है.