'Amit Tiwari Blog'

- 6 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • Blogs | अमित |शनिवार दिसम्बर 28, 2019 05:34 PM IST
    हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहां सत्ता के लिए होने वाली तिकड़मों में कौटिल्य (चाणक्य) याद आते हैं. इसे और से ठीक से पढ़िए, 'सिर्फ' सत्ता के लिए होने वाली तिकड़मों में ही चाणक्य याद आते हैं. यह ठीक है कि चाणक्य (अपनी कूटनीति और कुटिलता के कारण जो कौटिल्य भी कहलाते हैं) सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी तरक़ीब को सही मानते थे लेकिन उन्हें सिर्फ यहीं तक सीमित कर देना बहुत बड़ी नादानी/मूर्खता होगी. जो भी उन्हें नकारेगा या उन्हें हिस्सों में अपनाएगा, परिणाम भोगने होंगे. इससे पहले कि हम चाणक्य नीति पर आएं, आइए एक बार सरसरी निगाह से उनसे जुड़े इतिहास को देख लें.
  • Blogs | अमित |गुरुवार अगस्त 15, 2019 05:31 PM IST
    कम लोगों को पता होगा कि 18वीं, 19वीं सदी तक भारत दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में एक था. इस वजह से दुनिया के कारोबारियों और हुक्मरानों की नज़र भारत पर होती थी. यूरोप ही नहीं, रूस और अमेरिका तक भारतीय जगमगाहट का जलवा था. बेशक, भारत की गुलामी और आज़ादी के सारे अभिशाप और वरदान भारत की ही कोख से निकले थे, लेकिन दुनिया भर का पर्यावरण अपनी-अपनी तरह से इन प्रक्रियाओं को पोषण दे रहा था.
  • Blogs | अमित |मंगलवार जुलाई 16, 2019 12:10 AM IST
    विनोबा भावे ने कहा है विज्ञान जब राजनीति के साथ मिलती है तो विनाश का जन्म होता है. सभी शीर्ष वैज्ञानिक चाहते थे कि परमाणु बमों की जानकारी सोवियत रूस (जो उस समय मित्र राष्ट्रों के साथ था) भी दी जानी चाहिए. अमेरिका ने ऐसा नहीं किया. इसी दौरान रुजबेल्ट की मौत हो चुकी थी. ट्रूमैन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने. उनका मानना था कि जर्मनी ने सही तो जापान पर बम गिराकर युद्ध समाप्त किया जाए. अब परीक्षण की बारी आई, 16 जुलाई, 1945, समय  सुबह 5:29... प्लूटोनियम वाले 'the Gadget' (जो आगे फैटमैन बना) को एक टावर पर रखा गया.
  • Blogs | अमित |मंगलवार मई 28, 2019 09:15 AM IST
    इतिहास की उल्टी व्यख्या नहीं हो सकती. (जैसे 'समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाए) व्यक्ति एक-दूसरे के कार्यों से प्रेरणा ले सकते हैं, लेते हैं. कई बार देश की परंपराएं इतनी गहरी धंसी होती हैं कि, कभी ये किसी के कार्यों के द्वारा, तो कभी किसी के शब्दों के द्वारा प्रकट हो जाती हैं. अपनी वैचारिक मान्यताओं और सुविधा के कारण हम उन्हें किसी व्यक्ति या समूह से जोड़ देते हैं.
  • Blogs | अमित |गुरुवार अप्रैल 25, 2019 03:01 PM IST
    लकीरें कितनी मायने रखती हैं, पहले इसे समझिए. अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज़ ने अगर अपनी किताब An Uncertain Glory: India and its Contradictions  साल 2013 में न लिखकर 2015 या बाद में लिखी होती तो हम लेखकों का एक सरकार के प्रति पूर्वाग्रह मान लेते और आगे बढ़ जाते. यानी हमने एक लकीर खींच दी.
  • Blogs | रवीश कुमार |बुधवार अप्रैल 26, 2017 09:39 PM IST
    मुद्दों को भले न जगह मिल रही हो मगर हार-जीत के हिसाब से ही नगरपालिका चुनावों को मीडिया में काफी महत्व मिलने लगा है. बीजेपी ने पंचायत, ज़िला परिषद, नगर पालिका और नगर निगम चुनावों को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है. बीजेपी पूरी ताकत झोंक देती है, राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर सांसद मंत्री तक इन चुनावों में प्रचार करते हैं. इसके ज़रिये बीजेपी बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं की राजनीतिक महत्वकांक्षा को बनाए रखती है.
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