'Employee stock purchase scheme'

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  • Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार फ़रवरी 26, 2019 03:02 PM IST
    मैंने बैंक सीरीज़ की शुरुआत में ही और शायद पिछले साल इसी वक्त लिखा था कि बैंकों के भीतर गुलामी चल रही है. तब लगा था कि मैं गलत हूं. मैं कौन सा समाजशास्त्री हूं. इतनी बड़ी बात कैसे कह दी कि बैंकों में ग़ुलामी की प्रथा चल रही है. लेकिन अब मैं इसे होते हुए देख रहा हूं. अगर बैंकर गुलाम हो सकते हैं तो बाकियों की क्या हालत होगी. सोचिए आज बैंकरों के लिए कोई नहीं है. बैंकर भी ख़ुद के नहीं हैं.जब मनुष्य मनुष्य नहीं रह जाता तो सब एक-दूसरे की पीठ की चमड़ी उधेड़ने लगते हैं.
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