Blogs | रवीश कुमार |सोमवार जनवरी 14, 2019 12:41 AM IST हिन्दी अख़बारों के संपादकों ने अपने पाठकों की हत्या का प्लान बना लिया है. अख़बार कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं. हिन्दी के अख़बार अब ज़्यादातर प्रोपेगैंडा का ही सामान ढोते नज़र आते हैं. पिछले साढ़े चार साल में हिन्दी अख़बारों या चैनलों से कोई बड़ी ख़बर सामने नहीं आई. साहित्य की किताबों से चुराई गई बिडंबनाओं की भाषा और रूपकों के सहारे हिन्दी के पत्रकार पाठकों की निगाह से बच कर निकल जाते हैं. ख़बर नहीं है. केवल भाषा का खेल है.