Blogs | प्रियदर्शन |बुधवार नवम्बर 10, 2021 10:30 PM IST छठ की कई तरह की स्मृतियां मेरे भीतर हैं. दीपावली के बाद जब धूप नरम पत्तियों की तरह त्वचा को सहलाती थी और हवा की बढ़ती हल्की सी गुनगुनी ठंडक के बीच छठ की तैयारी शुरू होती थी तो उसमें सर्दियों के संकेत को हम पहली बार ठीक से पकड़ते थे. छठ की सुबह पहली बार हमारे स्वेटर निकलते थे. दिवाली में घर की सफाई के बाद झीलों, तालाबों और नदियों की सफ़ाई का सिलसिला शुरू होता और छठ के इस जल यज्ञ में हम डूबते हुए सूरज को भी शामिल कर लेते. एक मंद्र लय के उतार-चढ़ाव के बीच असंख्य कंठों से फूटते छठ के गीत पूजा को त्योहार में बदल देते थे.