Blogs | Sudhir Jain |बुधवार दिसम्बर 23, 2015 02:38 PM IST विश्लेषण करें तो मजबूरी के हालात में विकास के सपनों को छोड़कर वापस धार्मिक आस्था पर लौटने की अटकल खारिज नहीं की जा सकती। बस, देखना यह होगा कि कोई मुद्दा, जो अपने चरमोत्कर्ष को पहले ही पार कर चुका हो, क्या उसका इस्तेमाल फिर उतना ही धारदार बनाया जा सकता है...?