Blogs | Ravish Kumar |मंगलवार जनवरी 19, 2016 12:44 AM IST हमारी संस्थाओं की सजाएं सामंतवादी और जातिवादी सोच से क्यों मिलती-जुलती हैं। गांव से निकाल देना, कुएं से पानी नहीं पीने देना और होस्टल से निकाल देना। यह सजा है या सजा के नाम पर उसी मानसिकता की निरंतरता। हम हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एक दलित छात्र की आत्महत्या की बात कर रहे हैं।