Blogs | सुधीर जैन |मंगलवार जुलाई 16, 2019 04:09 PM IST इस बजट ने वाकई चक्कर में डाल दिया. विश्लेषक तैयार थे कि इस दस्तावेज की बारीकियां समझकर सरल भाषा में सबको बताएंगे, लेकिन बजट का रूप आमदनी खर्चे के लेखे-जोखे की बजाय दृष्टिपत्र जैसा दिखाई दिया. यह दस्तावेज इच्छापूर्ण सोच का लंबा-चौड़ा विवरण बनकर रह गया. बेशक बड़े सपनों का भी अपना महत्व है. आर्थिक मुश्किल के दौर में 'फील गुड' की भी अहमियत होती है, लेकिन बजट में सपनों या बहुत दूर की दृष्टि का तुक बैठता नहीं है. पारंपरिक अर्थों में यह दस्तावेज देश के लिए एक साल की अवधि में आमदनी और खर्चों का लेखा-जोखा भर होता है. हां, इतनी गुंजाइश हमेशा रही है कि इस दस्तावेज में कोई यह भी बताता चले कि अगले साल फलां काम पर इसलिए ज्यादा खर्च किया जा रहा है, क्योंकि ऐसा करना आने वाले सालों में देश के लिए हितकर होगा.