Blogs | Sarvapriya Sangwan |गुरुवार फ़रवरी 11, 2016 06:13 PM IST स्कूल के वक़्त मेरे पिता आदर्श लड़की की परिभाषा बताते थे। लड़की जो आंखें झुका कर रहे, सलवार-कमीज़ पहने, फालतू बात ना करे। मैंने आंठवी, नौवीं में ही सूट पहनना शुरू कर दिया था। स्कूल में कभी किसी लड़के से बात करने की हिम्मत तक ना हुई। किसी ने कभी कोशिश भी की तो रोने लगती थी।