Blogs | रवीश कुमार |रविवार अक्टूबर 23, 2016 02:50 AM IST आत्मकथा सिर्फ अपनी कथा नहीं होती है. उनकी भी कथा होती है जो उसके पात्र होते हैं. मैं कोई बोधि वृक्ष के नीचे नहीं बैठा था कि ज्ञान प्राप्त हुआ है. नाटक देखकर आया हूं. ज़िंदगी की जटिलताओं को समझने के लिए कम से कम टीवी एंकरों को नाटक देखना चाहिए. चैनलों ने फ़िल्मों से बहुत कुछ उधार लिया है. अगर वे नाटक से ले पाते तो आज ये दुर्दशा नहीं होती.