लोकतंत्र के ट्यूलिप की तरह है ट्यूनीशिया
Blogs | मंगलवार अगस्त 13, 2019 02:31 PM IST
फिलहाल दुनिया अमेरिका-चीन का व्यापार युद्ध, उत्तरी कोरिया के परमाणु परीक्षण, अमेरिका-रूस का परमाणु संधि से विलगाव तथा ईरान पर गड़गड़ाते युद्ध के बादलों के शोर में खोई हुई है. ऐसे में भला सवा करोड़ से भी 10 लाख कम आबादी वाले एक छोटे से ट्यूनीशिया नामक देश में चटकी कली पर किसी का ध्यान क्यों जाएगा. लेकिन जाना चाहिए.
बायोपिक फिल्मों का न बनना ही बेहतर...
Blogs | मंगलवार जुलाई 23, 2019 12:29 PM IST
समाजवादी विचारक राममनोहर लोहिया का मानना था कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 300 सालों तक उसकी कोई मूर्ति नहीं बनाई जानी चाहिए. इसके बाद यदि लगे कि बनाई जानी चाहिए, तो बनाई जाए. हमारी फिल्मी दुनिया ने इस सलाह को अपना अच्छा-खासा ठेंगा दिखा दिया है. 300 साल बाद तो बहुत दूर की बात है, जिन्दगी के 30 वर्ष पूरे करने पर भी वह 'वर्चुअल स्टेच्यू' बनाने को तैयार है.
पेशेवर नौकरशाहों का भी समुचित उपयोग ज़रूरी
Blogs | मंगलवार जुलाई 2, 2019 05:47 PM IST
सन् 1991 में देश की आर्थिक नीति में हुए 360 डिग्री बदलाव का एक अत्यंत अव्यावहारिक पहलू यह रहा कि उसके अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन करने की कोई बड़ी कोशिश नहीं की गई. ऐसा इसके बावजूद रहा कि प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1969) तथा द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2010) ने ऐसा करने के लिए कहा था. इन आयोगों का संकेत सरकारी सेवा को प्रोफेशनल बनाए जाने की ओर था.
सामंती घोड़ों पर सवार हमारे लोकतंत्री नवाब
Blogs | मंगलवार जून 18, 2019 04:42 PM IST
केंद्र में उपप्रधानमंत्री तथा राज्यों में एक-एक उपमुख्यमंत्री के बारे में तो हम लोग सुनते आए थे, लेकिन एक राज्य में पांच उपमुख्यमंत्री- यह आंध्र प्रदेश ने हमें पहली बार दिखाया है. और ऐसा तब है, जब इस पदनाम के रूप में न उनके पास कोई अतिरिक्त अधिकार होंगे, न किसी तरह की भी कोई विशेष सुविधा, तो फिर ऐसा क्यों है...?
प्रशासन में सुधार की मांग जरूरी
Blogs | सोमवार जून 10, 2019 12:54 PM IST
पिछले-करीब दो महिनों के चुनावी कोलाहल में जहां देश-दुनिया की बड़ी-बड़ी खबरें तक महज फुसफुसाहट बनकर रह गई हों, वहां प्रशासन की खबरों की उपेक्षा की शिकायत करनी थोड़ी नाइंसाफी ही होगी. फिर भी यहां उसकी यदि बात की जा रही है, तो केवल इसलिए, क्योंकि इन बातों का संबंध काफी कुछ जनता की जरूरी मांगों से है.
लोकतंत्र की परिभाषा में परिवर्तन की ज़रूरत
Blogs | गुरुवार मई 2, 2019 04:25 PM IST
"मेरे लिए लोकतंत्र का मतलब है, सबसे कमज़ोर व्यक्ति को भी उतने ही अवसर मिलें, जितने सबसे ताकतवर व्यक्ति को..." - ये शब्द उस व्यक्ति के हैं, जो इस देश को आज़ाद कराने के केंद्र में रहा है, तथा उनकी इस भूमिका की स्वीकार्यता के रूप में लोगों ने उन्हें अपने वर्तमान लोकतांत्रिक राष्ट्र का पिता माना. राजनीतिशास्त्र के एक सामान्य विद्यार्थी के रूप में लोकतंत्र की यह परिभाषा मुझे अब्राहम लिंकन की 'लोगों का, लोगों के लिए, लोगों के द्वारा' वाली परिभाषा से ज्यादा सटीक मालूम पड़ती है, क्योंकि इसमें लोगों का अर्थ भी निहित हैं - 'सबसे कमजोर व्यक्ति'
Blogs | शुक्रवार अप्रैल 12, 2019 03:22 PM IST
हर काम के पूरा होने के बाद प्राप्त परिणाम हमें उस कार्य के बारे में तर्कपूर्ण ढंग से विचार करके भविष्य के लिए व्यावहारिक कदम उठाने का एक अनोखा अवसर उपलब्ध कराते हैं. सिविल सेवा परीक्षा के पिछले चार साल के परिणामों को इस एक महत्वपूर्ण तथ्ययुक्त अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए. सिविल सेवा के अभी-अभी घोषित परिणामों के अनुसार देश की इस सबसे कठिन एवं सर्वाधिक प्रतिष्ठित अखिल भारतीय परीक्षा में टॉप करने वाले कनिष्क कटारिया अनुसूचित जाति से हैं.
'हैप्पीनेस' के छलावे से सावधान, 140वें स्थान पर कैसे हो सकता है भारत...?
Blogs | बुधवार मार्च 27, 2019 10:55 AM IST
अब, जब संयुक्त राष्ट्र की सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन्स नेटवर्क ने वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2019 जारी की है, इस छोटी सी, किन्तु बहुत वजनदार घटना पर विचार किया जाना बेहद ज़रूरी है. इसमें सबसे पहला सवाल 'खुशहाली' की परिभाषा पर ही उठाया जाना चाहिए. क्या बैरल में रहने वाले डियोजेनेस को इस रिपोर्ट के अनुसार किसी भी कोण से खुश व्यक्ति कहा जा सकता है...? विश्वविजेता से भी वह जो मांगता है, वह है धूप, जो यूं ही बहुतायत में उपलब्ध है, और जो खुशहाली के इंडेक्स से परे है. डियोजेनेस के उत्तर का क्या प्रभाव उस 23-वर्षीय नौजवान पर पड़ा होगा, क्या खुशहाली की गणना करते समय इसकी उपेक्षा की जानी चाहिए...?
राजनीतिक फिल्में और फिल्मों की राजनीति
Blogs | मंगलवार जनवरी 29, 2019 11:21 AM IST
आजादी के बाद यह पहला अवसर है, जब सीधे-सीधे राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित विशुद्ध राजनीतिक फिल्में (बायोग्राफी के रूप में ही सही) आईं. हालांकि इसकी एक शुरुआत सन् 1975 में 'आंधी' से हुई थी, लेकिन आपातकाल के तूफान का कुछ ऐसा कहर इस पर टूटा कि फिल्मकारों की राजनीतिक विषयों पर फिल्म बनाने की हिम्मत ही टूट गई.
अब केवल रोम नहीं, पूरा यूरोप जल रहा है...
Blogs | सोमवार जनवरी 14, 2019 01:23 PM IST
आज इसी महाद्वीप का सीना सुलग रहा है. इसके एक तिहाई से ज़्यादा देश अनेक तरह के आंदोलनों, विरोध प्रदर्शनों, परस्पर संघर्षों तथा अन्य संकटों से जूझ रहे हैं. यदि इन सभी देशों के आंदोलनों का एक कोलाज बना दिया जाए, तो उसमें उन देशों की संघर्ष गाथा सुनाई दे जाएगी, जिन पर इन्होंने निर्मम शासन किया था, और जिनके स्वायत्तता संबंधी विरोधों को ये राष्ट्रद्रोह कहकर सूलियों पर चढ़ा दिया करते थे.
राजनीति की भट्टी में पिघलाया जा रहा स्टील प्रेम...
Blogs | सोमवार जनवरी 14, 2019 03:13 PM IST
पहले देश के तीन राज्य के लोगों ने सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों में बदलाव किया. नई पार्टी सत्ता पर आसीन हुई, और गद्दी पर आने के बाद उसने जो दूसरा बड़ा काम किया, वह था - बड़ी संख्या में प्रशासनिक फेरबदल. मीडिया में इसे 'प्रशासनिक सर्जरी' कहा गया. 'सर्जरी' किसी खराबी को दुरुस्त करने के लिए की जाती है. ज़ाहिर है, इससे ऐसा लगता है कि इनके आने से पहले प्रशासन में जो लोग थे, वे सही नहीं थे. अब उन्हें ठिकाने (बेकार के पद) लगाया जा रहा है, जैसा व्यक्तिगत रूप से बातचीत के दौरान एक नेता ने थोड़ा शर्माते हुए कहा था, "पहले उनके लोगों ने मलाई खाई, अब हमारे लोगों की बारी है..."
एक विस्मृत विचारक और चौथी औद्योगिक क्रांति
Blogs | सोमवार दिसम्बर 10, 2018 06:12 PM IST
अब, जबकि वर्ष 2018 अपने अंत के करीब है, मन में मौजूद एक विचित्र किस्म के खालीपन की चुभन का एहसास निरंतर तीखा होता जा रहा है. दिमाग इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की जद्दोजहद में कुछ ज्यादा ही बेचैन है कि क्या सचमुच में मानव जाति की सामूहिक स्मृति इतनी अधिक कमजोर है कि वह डेढ़-दो सौ साल पहले की ऐसी बातों को अपनी दिमागी स्लेट से ऐसे मिटा दे, मानो कि उसका अस्तित्व कभी रहा ही न हो. बावजूद इसके कि वह घटना, वह व्यक्ति ऐसा क्रांतिकारी हो कि उसके बाद अभी तक उसका कोई भी सानी न हो.
दरकने लगी है 'चीन की दीवार', अब चेत जाना चाहिए उसे...
Blogs | शुक्रवार नवम्बर 30, 2018 01:33 PM IST
यह बात भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि हाल ही में अमेरिका-जापान और यूरोपीय संघ ने विश्व व्यापार संगठन में सुधार लाने के लिए जिन बिन्दुओं पर सहमति जताई है, वे आगे चलकर चीन के विरुद्ध जाएंगे. इस सहमति का मूल संबंध बौद्धिक सम्पदा की सुरक्षा से है. चीन अमेरिका के सिलिकॉन वैली के अलावा ब्रिटेन और जर्मनी के कई स्टार्ट-अप में तेज़ी से निवेश कर रहा है. इसके कारण उसे उत्कृष्ट तकनीकी मिल जाती है, जिसका इस्तेमाल वह अपने असैन्य और रक्षा के क्षेत्र में करता है.
भारत के पास एशियाई देशों से सुनहरे संबंधों का सुनहरा मौका...
Blogs | गुरुवार नवम्बर 15, 2018 07:44 PM IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिंगापुर में आयोजित 23वें आसियान शिखर सम्मेलन में जाना पहले की तुलना में अब इस मायने में ज़्यादा महत्व रखता है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साम्राज्यवादी मंसूबे कुछ अधिक तेज़ी से फैलते दिखाई दे रहे हैं. इस लिहाज़ से इसी सम्मेलन के दौरान क्वाड समूह के तीन अन्य देशों के साथ उनकी बातचीत अहम मायने रखती है. ये तीन अन्य देश जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं, जिनका प्रशांत महासागर से सीधा संबंध है.
फिल्मों में झलकते राजनीतिक आशय
Blogs | मंगलवार अक्टूबर 23, 2018 01:59 PM IST
'स्त्री', 'सुई-धागा' और 'मंटो', इन तीनों फिल्मों में एक बात जो एक-सी है, वह है - नारी की शक्ति और उसके अधिकारों की स्वीकृति. 'स्त्री' भले ही एक कॉमेडी थ्रिलर है, लेकिन उसमें स्त्री के सम्मान और शक्ति को लेकर समाज की जितनी महीन एवं गहरी परतें मिलती हैं, वह अद्भुत है. यही कारण है कि भूत-प्रेत जैसी अत्यंत अविश्वसनीय कथा होने के बावजूद उसने जबर्दस्त कलेक्शन किए.
अब जागना होगा ऊंघते अमेरिका को...
Blogs | बुधवार अक्टूबर 10, 2018 04:33 PM IST
निर्णय लेना आसान नहीं होता, और जो निर्णय लिए गए, वे तो और भी ज़्यादा कठिन थे. इसके लिए बहुत अधिक साहस की ज़रूरत थी, किन्तु भारत ने यह साहस कर दिखाया, वह भी एक ही दिन में, तथा एक ही देश की इच्छा के विरुद्ध नहीं, उसकी आदेशनुमा धमकियों को भी दरकिनार करते हुए...
लोकतंत्र पर मंडराती नौकरशाही तंत्र की छाया
Blogs | गुरुवार सितम्बर 27, 2018 01:37 PM IST
हमें यह सोचना होगा कि लोकतंत्र की आत्मा मूलतः लोक में बसती है या ब्यूरोक्रेसी में...? इतने उच्च स्तर पर प्रवेश करने से पहले ब्यूरोक्रेसी के ये सदस्य आए भले ही लोक-जीवन से क्यों न हों, लेकिन मसूरी की प्रशासनिक अकादमी में प्रवेश करते ही उनकी चेतना का जो रूपान्तरण होता है, वह उन्हें लोकतंत्र पर शासन करने वाले एक विशिष्ट तंत्र में तब्दील कर देता है,
एक अबूझ शख्स की कई अनसुलझी दास्तानें
Blogs | मंगलवार सितम्बर 18, 2018 05:26 PM IST
वे अमेरिकी अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की लगभग पौने तीन साल की कार्यशैली से खुश हो सकते हैं, जो 'अमेरिकन फर्स्ट' के नारे पर विश्वास करते हुए अपने देश के लिए एक 'स्वर्णयुग' की कल्पना कर रहे हैं, लेकिन सच यह है कि अधिकांश अमेरिकी उनकी कार्यशैली से बेहद नाखुश हैं.
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