Blogs | रवीश कुमार |शुक्रवार मार्च 17, 2017 11:38 PM IST संसाधन से लेकर संपादकीय पसंद जैसे तमाम कारणों से दिल्ली से चलने वाले स्थानीय किंतु राष्ट्रीय कहलाने वाले चैनलों की दुनिया में दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत का आगमन तभी होता जब वहां ऐसा कुछ होता है जिसका तालुल्क भाषा से कम हो, हल्ला हंगामा या तमाशा से ज़्यादा हो. आज के मीडिया जगत में तमाशा की कोई भाषा नहीं होती है. तमाशा हो तो हिन्दी चैनलों पर फ्रांस की घटना भी भारत की ज़रूरी ख़बरों से ज़्यादा जगह घेर लेगी.