File Facts | ख़बर न्यूज़ डेस्क |सोमवार दिसम्बर 31, 2018 01:23 PM IST उत्तर प्रदेश के कैराना, फूलपुर और गोरखपुर में इस साल हुए संसदीय उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के एकजुट होने से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिली हार से भाजपा विरोधी मोर्चे को अहम बढ़त हासिल हुई और 2018 के खत्म होते होते विपक्षी दल अब आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए जुटने लगे हैं. हिंदी भाषी राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने हालांकि कुछ महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय दलों को हतोत्साहित कर दिया है, जो यह कहना चाहते हैं कि अगली सरकार का गठन कैसे होगा. इस संदर्भ में किसी भाजपा विरोधी मोर्चे पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए विश्लेषकों को लगता है कि अब हालात भगवा दल को हराने के लिए राज्य स्तर के गठबंधन के लिए तैयार हैं और लोकसभा चुनाव के बाद अंतिम संख्या के सामने आने पर संघीय मोर्चा निर्भर करता है. लेकिन सवाल इस बात का है कि लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन नहीं हो पाया तो क्या एनडीए को हराना आसान होगा क्योंकि 'मोदी लहर' भले ही थम रही हो लेकिन उसके खिलाफ 'कांग्रेस लहर' जैसी भी बात नहीं है.