Blogs | रवीश रंजन शुक्ला |बुधवार नवम्बर 28, 2018 09:17 PM IST 26 नवंबर को ग्वालियर से चला, रात को भरतपुर में रुका. 27 को सुबह सात बजे रामगढ़ के लिए रवाना हो गया. चार महीना पहले यहीं रकबर को कथित तौर पर पीटा गया था, बाद में उसकी मौत हो गई थी. टैक्सी ड्राइवर से बात बढ़ाई तो बोलने लगा साहब यहां मेव अच्छी तादाद में हैं. पहले बहुत गाय बूचड़खाने जाती थी अब गौरक्षकों की बहुत निगरानी रहती है. मैंने पूछा ये बूचड़खाने किसके हैं, वो बोला अब ये का पता मुझे. मैं कौन सा आपकी तरह रिपोर्टर हूं. मैंने कहा फिर ये कैसे पता है कि सब गाय बूचड़खाने ही जा रही होंगी. वो बोला अरे साहब आप क्या जानते हैं अभी वीडियो दिखाता हूं कैसे कटती हैं. मैं कहा नहीं ये व्हाट्सअप वीडियो मत दिखाओ गाड़ी ध्यान से चलाओ. मैं सोचने लगा मोबाइल जाति और धर्म के ध्रुवीकरण के केंद्र में है. लोगों में डर और धारणाएं बहुत तेजी से बनाता है. इस बात का अंदाजा हुआ जब रामगढ़ के रास्ते में कई जगह बड़ी बड़ी गौशालाएं और गौरक्षकों के होर्डिंग्स लगे देखे.