Blogs | रवीश कुमार |गुरुवार नवम्बर 30, 2017 01:32 AM IST हमारी सारी बहसें अंत में व्यवस्था की उस मेज़ पर आकर ख़त्म होती है जहां किसी आम आदमी को उसका हक मिलना है. यह हक सूचना के अधिकार से लेकर जीने के अधिकार तक और कानून के पालन तक का होता है. हम अक्सर व्यवस्थाओं को बहुत रियायत दे देते हैं. जब उनकी लापरवाही से किसी की जान चली जाती है तो समझ नहीं पाते कि इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है. आप अपने शहरों में देखते ही होंगे, कोई त्योहार आया नहीं कि नेताओं की तस्वीरें बिजली से लेकर ट्रैफिक लाइट के खंभे पर टंग जाती है. हर दल के लोग यही करते हैं. बिना मतलब एक ही पोस्टर में चार-चार त्योहारों की बधाई और उसमें तीस-चालीस चेहरे ठूंस कर आपको घूर रहे होते हैं. इनकी वजह से किनती दुर्घटनाएं होते होते बचती होंगी या फिर आस पास का नज़ारा भद्दा लगने लगता होगा, यह आप समझ सकते हैं. कई बार ये जानलेवा भी हो जाते हैं.