Blogs | शुक्रवार अक्टूबर 2, 2015 11:58 AM IST प्रकृति ने मनुष्य को चेतना का वह वरदान दिया है, जिसका इस्तेमाल कर वह अपने मैकेनिज़्म को जैसा बनाना चाहे, बना सकता है। आम का पेड़ ऐसा नहीं कर सकता, नीम भी नहीं कर सकता। मार्क ज़करबर्ग ने कर लिया, हम भी कर सकते हैं। वैसे, इस हम में 'आप' भी शामिल हैं।