Blogs | प्रियदर्शन |शुक्रवार फ़रवरी 18, 2022 12:46 PM IST यह अनायास नहीं है कि पूंजी के कसते शिकंजे के बीच आधुनिकता नाम का जो दोजख हम बना रहे हैं, उसमें ग़ालिब किसी फ़रिश्ते की तरह किसी फ़िरदौस से आते हैं और एक मरहम, एक फ़ाहा हमारी ज़ख़्मी रूहों पर लगा जाते हैं. वे एक पीछे छूट रहे हिंदुस्तान की ख़ुशबू हैं जिन्हें बचाए रखना ज़रूरी है.