Blogs | Priyadarshan |सोमवार फ़रवरी 8, 2016 05:23 PM IST 'हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना बार-बार देखना।' सोमवार की सुबह आख़िरी सांस लेने वाले शायर निदा फ़ाज़ली की ताकत यही थी- बेहद सादा ज़ुबान में ढली उनकी नज़्में और ग़ज़लें बार-बार देखे और पढ़े जाने का न्योता देती थीं।