Blogs | निधि कुलपति |बुधवार दिसम्बर 27, 2017 08:08 PM IST गंदी हो गई... बेआबरू हो गई...शीलभंग हो गया...समाज में तो मेरा चरित्र ही खराब हो गया....कौन अपनायेगा मुझे....तो घुट-घुट कर सलाखों के पीछे जानवरों के से हालात में जी लेते हैं...सोच है उन लड़कियों की जो वहशी वीरेंद्र देव दीक्षित के अनेकों अध्यात्मिक विश्वविद्यालय में अब भी कैद हैं...इससे बाहर निकली प्रेरणा ने बताया तो दहल गया मन...मां-पिता ही तो छोड़ जाते हैं... ऐसे आश्रमों में अपनी छोटी-बड़ी बच्चियों को... आध्यात्मिक ज्ञान मिलेगा बच्चियों को तो इससे बड़ा पुण्य क्या हो सकता है...समाज में परिवार का नाम भी होगा.....अच्छा ही तो है लड़कियो का बोझ कुछ कम भी हो जायेगा....न पढ़ाना पड़ेगा, न खिलाना ...