'Rajendra prasad jayanti'

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  • Career | Written by: अर्चित गुप्ता |मंगलवार दिसम्बर 3, 2019 12:36 PM IST
    Rajendra Prasad birth Anniversary: देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आज जयंती (Rajendra Prasad Jayanti) है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म जीरादेई (बिहार) में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. राजेन्द्र बाबू बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई थी. मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. लॉ करने के बाद वह एक बड़े वकील के रूप में प्रैक्टिस करते रहे. वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था. आइये जानते हैं डॉ राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी 10 बातें..
  • Career | अर्चित गुप्ता |सोमवार दिसम्बर 3, 2018 10:41 AM IST
    डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) भारत के पहले राष्ट्रपति थे. आज राजेंद्र प्रसाद की जंयती (Rajendra Prasad Jayanti) के मौके पर पूरा देश उनको याद कर रहा है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म (Rajendra Prasad Birthday) 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे.
  • Career | अर्चित गुप्ता |सोमवार दिसम्बर 3, 2018 10:41 AM IST
    डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज जयंती (Dr. Rajendra Prasad Jayanti) है. पूरा देश आज उनकी जयंती (Rajendra Prasad Birth Anniversary) के मौके पर उन्हें याद कर रहा है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म (Rajendra Prasad Birthday) 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति (First President Of India) थे.
  • India | प्रभात उपाध्याय |सोमवार दिसम्बर 3, 2018 05:47 AM IST
    पटेल के निधन के साल भर के अंदर ही पंडित नेहरू और डॉ. प्रसाद (Rajendra Prasad) के बीच मतभेद सतह पर आ गए. इसके पीछे था सोमनाथ मंदिर. 1951 में जब मंदिर का पुननिर्माण पूरा हुआ तो राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) को मंदिर का उद्घाटन करने का न्योता दिया गया और उन्होंने इसे स्वीकार भी लिया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू को यह पसंद नहीं आया.  
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