'Rakesh malviya blog'

- 120 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |गुरुवार फ़रवरी 14, 2019 04:00 PM IST
    महात्मा गांधी ने कहा था ‘जब तक हम अछूतों को गले नहीं लगाएंगे हम मनुष्य नहीं कहला सकते. मगर बुंदेलखंड के इस गांव की दशा दयनीय है.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |सोमवार फ़रवरी 4, 2019 01:16 PM IST
    सत्तर साल पहले के भारतीयों ने भी जब संविधान की प्रस्तावना आत्मार्पित की, तब समता, स्वतंत्रता, न्याय की बात का बड़ा ध्यान रखा. लेकिन उदारीकरण के बाद के केवल तीसरे दशक तक ही पूंजी के तांडव ने वह तमाशा किया, जिसमें केवल अपने लाभ के लिए संसाधनों पर कब्जा, कब्जे से अधिकतम लूट. लूट किसी भी कीमत पर. इसकी ताजा मिसाल पातालकोट का वह हिस्सा है, जिसे किसी और ने नहीं, सरकार ने एक कंपनी को साहसिक गतिविधियों के नाम पर दिया. कंपनी ने बहुत बेहयाई से वहां अपने कब्जे की बागड़ भी लगाकर 'लाभ कमाने की फैक्टरी' भी चालू कर ली.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |मंगलवार जनवरी 29, 2019 11:31 AM IST
    नानाजी देशमुख ने सक्रिय राजनीति से अवकाश लेकर जो क्षेत्र चुना, उसमें सतना का मझगवां इलाका भी है. यहां उनकी संस्था ने कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की. यह इलाका चित्रकूट से 30 किलोमीटर दूर है. चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उस वक्त इस इलाके में डाकुओं का खासा आतंक था. इस क्षेत्र में उन्होंने ग्रामीण विकास का जमीनी काम शुरू किया.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |शुक्रवार जनवरी 25, 2019 02:39 PM IST
    ऐसे में हम गणतंत्र का गुणगान जरूर कर सकते हैं, लेकिन 2 साल 11 महीने और 18 दिन में 166 बैठकों के बाद बनी संविधान नाम की किताब की मूल भावना के साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसे देश कैसे स्वीकार कर सकता है ? अमीरी—गरीबी की खाई को केवल इस तर्क से तो नहीं स्वीकार किया जा सकता कि यह खाई तो हमेशा से ही रही है, नीति—नियंताओं को यह देखना होगा कि यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |सोमवार दिसम्बर 3, 2018 11:54 AM IST
    आइए, बरसी आ गई है, जो लोग इसे भूल गए हैं, या जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है, उन्हें बता दें कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर के बीच की रात भोपाल शहर पर कहर बनकर टूटी थी. यह हादसा दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से एक खतरनाक ज़हरीली गैस रिसी थी, और पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. इस मामले में सरकार ने 22,121 मामलों को मृत्यु की श्रेणी में दर्ज किया था, जबकि 5,74,386 मामलों में तकरीबन 1,548.59 करोड़ रुपये की मुआवज़ा राशि बांटी गई, लेकिन क्या मुआवज़ा राशि बांट दिया जाना पर्याप्त था.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |रविवार दिसम्बर 2, 2018 03:30 AM IST
    देश भर के कोने-कोने से जब हजारों किसान दिल्ली के दिल से अपनी व्यथा-कथा कहने आए तो क्या देश की राजधानी किसानों के लिए मामूली रोशनी का इंतजाम नहीं कर पाई. रामलीला मैदान के तकरीबन आधे हिस्से में लगा किसानों का शामियाना रोशनी से उतनी ही दूर था जितनी दूरी अक्सर शहर और गांवों में रहती है. 
  • Blogs | Written by: राकेश कुमार मालवीय |सोमवार अक्टूबर 22, 2018 12:23 PM IST
    मुख्यमंत्री ने इस गांव में रात बिताने के बाद माना था कि इस इलाके में भयंकर गरीबी है. उन्होंने कहा था कि वह चुनाव होने के कारण उस वक्त कोई घोषणा नहीं कर सकते, लेकिन चुनाव के बाद पूरी सरकार लेकर जाएंगे और इलाके की तस्वीर बदल देंगे. इलाके की जनता ने इस वादे के बाद भी यहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) को नहीं जिताया. जिस गांव ने मुख्यमंत्री की मेज़बानी की, उस गांव की तस्वीर भी नहीं बदल सकी. प्रधानमंत्री आवास योजना इसका एक उदाहरण मात्र है, और यह गांव कई और योजनाओं से भी अछूता है.
  • Blogs | Written by: राकेश कुमार मालवीय |गुरुवार सितम्बर 20, 2018 10:54 AM IST
    आखिर कोई क्यों यह आवाज़ नहीं उठाता है कि दुनिया में शिशु मृत्यु के सर्वाधिक आंकड़े भारत के हैं, जिसके बाद नाइजीरिया का नंबर है. यहां तक कि गरीब देश भी अपने आंकड़े सुधार रहे हैं.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |बुधवार सितम्बर 5, 2018 09:10 PM IST
    आज शिक्षक दिवस है. देश के तकरीबन 14 लाख स्कूलों के बच्चे अपने प्रिय शिक्षक को तरह-तरह से शुभकामना दे रहे होंगे. किसी ने अपने प्रिय शिक्षक के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए घर के बगीचे से फूल तोड़कर दिया होगा, कुछ ने ग्रीटिंग कार्ड बनाकर दिया होगा. किसी भी आधारभूत सुविधा से ज़्यादा बड़ी ज़रूरत शिक्षक का होना है. हम सभी के ज़हन में अपने-अपने प्रिय या अप्रिय भी शिक्षक की छवि कैद ज़रूर होती है, लेकिन देखिए कि देश की एक बड़ी विडम्बना है कि देश के लाखों बच्चों के पास अपने प्रिय शिक्षक चुनने का विकल्प ही नहीं है, क्योंकि वहां उन्हें पढ़ाने के लिए केवल एक ही शिक्षक मौजूद है. एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल है, सारी कक्षाएं हैं, ऐसे में आप खुद ही सोच लीजिए कि हमारे देश के ऐसे स्कूल का क्या होने वाला है...? बिना शिक्षक के स्कूल कैसे चलने वाले हैं, भविष्य का भारत कैसे और कैसा बनने वाला है...?
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |सोमवार अगस्त 6, 2018 12:43 PM IST
    बच्चे हैं. यूं भी हाशिये पर हैं. लेकिन जो शेल्टर होम के बच्चे हैं, वे तो भयावह पीड़ा को पहले ही भोग चुके होते हैं. एक जो बच्‍चा शेल्‍टर होम में दाखि‍ल होता है, उसकी सैकड़ों दारुण कहानियां बन चुकी होती हैं.
और पढ़ें »
 
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com