'Unemployment series'
- 4 न्यूज़ रिजल्ट्स Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार मार्च 5, 2019 11:04 PM IST रेलवे के ग्रुड-डी के नतीजे आए हैं, बड़ी संख्या में परीक्षार्थी रेल मंत्री पीयूष गोयल की टाइम लाइन पर लिख रहे हैं कि जो अंक मिले हैं उसकी प्रक्रिया जानना चाहते हैं. मुझे भी बहुत से मैसेज आए हैं कि 100 अंक के पेपर में किसी को 110 या 148 नंबर कैसे मिल सकते हैं. नौजवान किसी नॉर्मलाइज़ेशन की बात कर रहे थे, जिसके कारण ऐसा हुआ है, उनके मन में तरह-तरह के सवाल हैं. एक सवाल यही कि पहले मूल अंक दिखाना चाहिए फिर नॉर्मलाइज़ेशन के अंक को जोड़कर औसत अंक बताना चाहिए. बेहतर है कि रेल मंत्री या रेल मंत्रालय छात्रों को प्रक्रिया के बारे में बताए और उनके सवालों के जवाब दे. वे काफी परेशान हैं. कई बार हम ये सोचते हैं कि जिनका नहीं हुआ है वही हल्ला कर रहे हैं, तब भी परीक्षा की विश्वसनीयता के लिए ज़रूरी है कि प्रक्रिया के बारे में सबको बताया जाए.
Blogs | रवीश कुमार |सोमवार दिसम्बर 10, 2018 02:48 PM IST ऐसा लगता है कि सरकारें ज़िद पर अड़ी हैं कि हम इन चयन आयोगों में कोई बदलाव नहीं करेंगे. हर परीक्षा विवादों से गुज़र रही है. प्रश्न पत्र लीक होने से लेकर रिश्वत लेकर नौकरी देने के आरोपों और किस्सों ने नौजवानों की रातों की नींद उड़ा दी. सिस्टम का अपने प्रति इस तरह अविश्वास पैदा करते जाना उसके लिए सही नहीं होगा.
Blogs | रवीश कुमार |बुधवार जून 27, 2018 11:33 PM IST कई बार हमें लगता है कि किसी विश्वविद्यालय की समस्या इसलिए है क्योंकि वहां स्वायत्तता नहीं है इसलिए उसे स्वायत्तता दे दी जाए. जब भी उच्च शिक्षा की समस्याओं पर बात होती है, ऑटोनमी यानी स्वायत्तता को एंटी बायेटिक टैबलेट के रूप में पेश किया जाता है. लेकिन आप किसी भी विश्वविद्यालय को देखिए, चाहे वो प्राइवेट हो या पब्लिक यानी सरकारी क्या वहां सरकार या राजनीतिक प्रभाव से स्वायत्त होने की स्वतंत्रता है. सरकार ही क्यों हस्तक्षेप करती है, वो हस्तक्षेप करना बंद कर दे. कभी आपने सुना है कि वाइस चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहतर की जाएगी, उनका चयन राजनीतिक तौर पर नहीं होगा.
Blogs | रवीश कुमार |बुधवार जून 20, 2018 11:23 PM IST कई बार जवानों और किसानों की हालत देखकर लगता है कि हम सब ज़िद पर अड़े हैं कि इनकी तरफ देखना ही नहीं है. समस्या इतनी बड़ी है कि समाधान के नाम पर पुड़िया पेश कर दी जाती है जो मीडिया में हेडलाइन बनकर गायब हो जाती है. अनाज और आदमी दोनों छितराए हुए हैं. न तो दाम मिल रहा है न काम मिल रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ये मुद्दे एक दूसरे की निंदा करने भर के लिए हैं मगर कोई भी ठोस प्रस्ताव जनता के बीच नहीं रखता है कि वाकई क्या करने वाला है, जो कर रहा है वो क्यों चूक जा रहा है. कई बार लगता है कि हमारे राजनेता, हमारे अर्थशास्त्री, सिस्टम में बैठे लोगों ने ज़िद कर ली है कि इन बुनियादी सवालों पर बात नहीं करना है, मीडिया को हर रात कोई न कोई थीम मिल जाता है, सब कुछ इसी थीम की तलाश के लिए हो रहा है. इसके बाद भी भारत के भीतर से तस्वीरें उथला कर सतह पर आ जा रही हैं.
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