Literature | Reported by: शहादत |रविवार दिसम्बर 8, 2019 02:06 PM IST नागार्जुन का जीवन यायावरी का जीवन था. बुढ़ापे में भी वह यह कहते पाए जाते कि जब भी बीमार पड़ूं, किसी ट्रेन का टिकट कटाकर गाड़ी में चढ़ा देना, ठीक हो जाऊंगा. जब वह सरकार की विकास-अवधारणा पर खिसियाते तो कहते कि यदि और कुछ भी करने में सरकार बिलकुल ही नाकाम है तो यही कर दे कि हर नागरिक को देश-भ्रमण करवा दे, इससे कूपमंडूकता तो खत्म होगी. काशी की विद्वत्परंपरा से निकलकर वह आर्यसमाज की तरफ गए, श्रीलंका जाकर बौद्ध बने, उधर से लौटकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए.