Literature | प्रियदर्शन |शुक्रवार मार्च 3, 2017 09:40 AM IST दुष्यंत के बाद इस दौर तक आते-आते हिन्दी ग़ज़लों ने भी अपना चोला पूरी तरह बदला है. प्रताप सोमवंशी इसी साझा परंपरा की पैदाइश हैं, जिसमें वह अपना एक अलग रंग भी मिलाते हैं. 'इतवार छोटा पड़ गया' की ग़ज़लें इसका बहुत जीवंत सबूत हैं.