Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार सितम्बर 4, 2018 04:06 PM IST भाषणों के मास्टर कहे जाते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. साल 2013 में जब वह डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये के गिरने पर दहाड़ रहे थे, तब लोग कहते थे, 'वाह मोदी जी, वाह... यह हुआ भाषण... यह भाषण नहीं, देश का राशन है... हमें बोलने वाला नेता चाहिए... पेट को भोजन नहीं, भाषण चाहिए...' यह बात भी उन तक पहुंची ही होगी कि पब्लिक में बोलने वाले नेता की डिमांड है. बस, उन्होंने भी बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी. पेट्रोल महंगा होता था, मोदी जी बोलते थे. रुपया गिरता था, मोदी जी बोलते थे. ट्वीट पर री-ट्वीट, डिबेट पर डिबेट. 2018 में हम इस मोड़ पर पहुंचे हैं, जहां 2013 का साल राष्ट्रीय फ्रॉड का साल नज़र आता है, जहां सब एक दूसरे से फ्रॉड कर रहे थे.