Blogs | सुधीर जैन |शुक्रवार अगस्त 31, 2018 02:45 PM IST पुलिस ने जिन विद्वानों को दबिश डालकर पकड़ लिया था, उन्हें वापस उनके घर छोड़कर आना पड़ा. लेखकों, कवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर यह रोक सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो पाई. गौरतलब है कि भारतीय न्याय व्यवस्था की एक-एक बात संजोकर रखी जाती है. अदालतों के आदेशों को इतिहास की अलमारी में संगवाकर रखा जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इन विद्वानों की गिरफ्तारी पर रोक लगाकर उसे नज़रबंदी में तब्दील करने का जो अंतरिम आदेश दिया, वह भी इतिहास में सुरक्षित रखा जाएगा. यह आदेश जिनके खिलाफ है, वे कह सकते हैं कि यह आदेश अंतिम निर्णय नहीं है, लेकिन इस मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने एक दार्शनिक वाक्य भी बोला है - असहमति लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व' है... यह सार्थक वाक्य इतिहास में ज़रूर जाएगा. इतना ही नहीं, अदालत ने अपराधशास्त्रियों और न्यायशास्त्रियों को सोच-विचार का एक विषय भी दे दिया है.