Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार अक्टूबर 26, 2021 10:41 PM IST भांति-भांति के गोरखधंधों में शामिल अफ़सरों के सहारे किसी को फंसा देने के मामले में भारत में एक नहीं, अनगिनत विश्वगुरु हैं. उनकी कहानियों से दिल दहलता है और बहलता भी है लेकिन ऐसे अफसरों की तादाद इतनी है कि एक को हटा कर दूसरा लाया जाता है और खेल वही चलता है. आर्यन ख़ान ही नहीं, इनके चंगुल में ऐसे कितने ही लोग फंसते चले जाते हैं. पुलिस और जांच एजेंसियों के अपराधीकरण का राष्ट्रीयकरण हो चुका है. एक राष्ट्र, एक अपराधी. बाकी सब उसके सिपाही. अफसर को भी पता नहीं होता कि उसका किस तरह से इस्तमाल होने वाला है. दांव पर सब हैं और छांव में सिर्फ वो है. सबका मालिक एक. आर्यन ख़ान तो सिर्फ एक उदाहरण है. 3 अक्तूबर से आर्यन ख़ान हिरासत में हैं लेकिन उनकी मेडिकल जांच नहीं हुई है. आर्यन के पास से कोई ड्रग्स नहीं मिला है. इसी आधार पर मुकुल रोहतगी ने बांबे हाईकोर्ट के सामने अपनी बहस शुरू की और कहा कि एनसीबी के अधिकारी पुलिस अधिकारी की तरह होते हैं और इनके सामने दिया गया कोई भी बयान कोर्ट में स्वीकार्य नहीं होता है. मुकुल रोहतगी ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल का समीर वानखेडे और पंच को लेकर हुए विवाद से कोई संबंध नहीं है.