'राकेश कुमार मालवीय'

- 44 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |मंगलवार जुलाई 30, 2019 02:03 PM IST
    बुनियादी तालीम इस जमाने में बीते दिनों की बात ही लगती है, क्योंकि इसमें श्रम पर जोर दिया गया है. खेती, किसानी, साफ-सफाई, खाना बनाने, सिलाई, कढ़ाई, चित्रकारी और बहुत सारी गतिविधियों पर जोर दिया गया है, अब ये काम यदि स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिए जाएं, तो अख़बार या टीवी चैनल की ख़बर बनते देर नहीं लगेगी.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |मंगलवार मई 7, 2019 08:55 PM IST
    अक्षय तृतीया के दिन छपे अखबार में पहले पन्ने पर खबर आई. शीर्षक है '14 साल की लड़की की 52 साल के वकील से शादी वैध : कोर्ट' . इसकी सबहेडिंग में लिखा गया है कि 'बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि हम युवती का भला देख रहे हैं अब समाज में कोई और उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा.' देश में हिंदू कैलेंडर की जो तारीख बाल विवाह के लिए बदनाम मानी जाती है उस दिन पहले पन्ने पर छपी यह खबर हमें सोचने पर मजबूर करती है. बाल विवाह के तमाम कानूनों, प्रावधानों और अभियानों के बीच यह निर्णय एक व्यक्ति का जीवन बचाने के लिए भले ही इस शादी को वैध करार दे रहा हो, लेकिन आप सोचिए कि इस निर्णय का संदेश क्या जाने वाला है?
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |बुधवार मार्च 13, 2019 10:18 PM IST
    एक अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर है कि नोटबंदी के निर्णय पर देश का रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया सहमत नहीं था. नोटबंदी के ढाई घंटे पहले तक भी इस निर्णय पर सवाल किए गए थे और शंका जताई गई थी कि जिस लक्ष्य को लेकर यह फैसला लिया जा रहा है वह इससे हासिल नहीं होगा! यानी काला धन के लौटने पर आशंका जताई गई थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन से यह बात ऐन चुनाव के वक्त एक बार फिर सामने आ गई है. हालांकि मुख्यधारा के अखबारों ने इस खबर को कोई खास तवज्जो नहीं दी.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |गुरुवार फ़रवरी 14, 2019 04:00 PM IST
    महात्मा गांधी ने कहा था ‘जब तक हम अछूतों को गले नहीं लगाएंगे हम मनुष्य नहीं कहला सकते. मगर बुंदेलखंड के इस गांव की दशा दयनीय है.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |सोमवार फ़रवरी 4, 2019 01:16 PM IST
    सत्तर साल पहले के भारतीयों ने भी जब संविधान की प्रस्तावना आत्मार्पित की, तब समता, स्वतंत्रता, न्याय की बात का बड़ा ध्यान रखा. लेकिन उदारीकरण के बाद के केवल तीसरे दशक तक ही पूंजी के तांडव ने वह तमाशा किया, जिसमें केवल अपने लाभ के लिए संसाधनों पर कब्जा, कब्जे से अधिकतम लूट. लूट किसी भी कीमत पर. इसकी ताजा मिसाल पातालकोट का वह हिस्सा है, जिसे किसी और ने नहीं, सरकार ने एक कंपनी को साहसिक गतिविधियों के नाम पर दिया. कंपनी ने बहुत बेहयाई से वहां अपने कब्जे की बागड़ भी लगाकर 'लाभ कमाने की फैक्टरी' भी चालू कर ली.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |मंगलवार जनवरी 29, 2019 11:31 AM IST
    नानाजी देशमुख ने सक्रिय राजनीति से अवकाश लेकर जो क्षेत्र चुना, उसमें सतना का मझगवां इलाका भी है. यहां उनकी संस्था ने कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की. यह इलाका चित्रकूट से 30 किलोमीटर दूर है. चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उस वक्त इस इलाके में डाकुओं का खासा आतंक था. इस क्षेत्र में उन्होंने ग्रामीण विकास का जमीनी काम शुरू किया.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |शुक्रवार जनवरी 25, 2019 02:39 PM IST
    ऐसे में हम गणतंत्र का गुणगान जरूर कर सकते हैं, लेकिन 2 साल 11 महीने और 18 दिन में 166 बैठकों के बाद बनी संविधान नाम की किताब की मूल भावना के साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसे देश कैसे स्वीकार कर सकता है ? अमीरी—गरीबी की खाई को केवल इस तर्क से तो नहीं स्वीकार किया जा सकता कि यह खाई तो हमेशा से ही रही है, नीति—नियंताओं को यह देखना होगा कि यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |सोमवार दिसम्बर 3, 2018 11:54 AM IST
    आइए, बरसी आ गई है, जो लोग इसे भूल गए हैं, या जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है, उन्हें बता दें कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर के बीच की रात भोपाल शहर पर कहर बनकर टूटी थी. यह हादसा दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से एक खतरनाक ज़हरीली गैस रिसी थी, और पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. इस मामले में सरकार ने 22,121 मामलों को मृत्यु की श्रेणी में दर्ज किया था, जबकि 5,74,386 मामलों में तकरीबन 1,548.59 करोड़ रुपये की मुआवज़ा राशि बांटी गई, लेकिन क्या मुआवज़ा राशि बांट दिया जाना पर्याप्त था.
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |रविवार दिसम्बर 2, 2018 03:30 AM IST
    देश भर के कोने-कोने से जब हजारों किसान दिल्ली के दिल से अपनी व्यथा-कथा कहने आए तो क्या देश की राजधानी किसानों के लिए मामूली रोशनी का इंतजाम नहीं कर पाई. रामलीला मैदान के तकरीबन आधे हिस्से में लगा किसानों का शामियाना रोशनी से उतनी ही दूर था जितनी दूरी अक्सर शहर और गांवों में रहती है. 
  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |शुक्रवार अगस्त 3, 2018 02:48 PM IST
    हम सोचते हैं कि देश को बड़े मामलों से नुकसान पहुंचता है, जब शेयर बाजार बैठ जाता है, डॉलर के मुकाबले रुपया गिर जाता है, वगैरह-वगैरह. पर सोचिए कि एक छोटी सी आदत का न होना, या उसके विषय में भ्रांति होने से भी देश भारी गड्ढे में चला जाता है.
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