Blogs | प्रियदर्शन |सोमवार जून 11, 2018 10:21 PM IST जिस दौर में किसी रोहित वेमुला को हैदराबाद विश्वविद्यालय में आत्महत्या करनी पड़े, जिस दौर में उत्साही गोरक्षकों का हुजूम कहीं अल्पसंख्यकों को निशाना बनाता हो और कभी दलितों की पीठ उधेड़ता हो, जिस दौर में दलित प्रतिरोध तरह-तरह की शक्लें अख़्तियार कर रहा हो, उस दौर में कोई कारोबारी फिल्म ऐसी भी बन सकती है जैसी 'काला' है.