Blogs | रवीश कुमार |सोमवार जून 13, 2022 10:53 PM IST नूपुर शर्मा का सर कलम करने की मांग करने वालों को अदालत की जरूरत नहीं रही, किसी जावेद का घर बुलडोजर से ढहा देने पर ख़ुश होने वालों को भी अदालत की ज़रूरत नहीं रही. यह सही वक्त है कि भारत की अदालतें तय कर लें कि उनकी ज़रूरत रही या नहीं रही. क्या हर बार ये संयोग ही होता है कि प्रदर्शन या हिंसा के बाद किसी को तुरंत ही मास्टरमाइंड बताकर अतिक्रमण के नाम पर उसका घर गिराया जाने लगता है? जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तो बकायदा हर जिले में खुफिया तंत्र और उसके संचालन के लिए एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था, बड़े अफसर की जवाबदेही तय की थी, ताकि भीड़ की हिंसा रोकी जा सके. इस गाइडलाइन के हिसाब से कितने बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है?