Blogs | विवेक रस्तोगी |बुधवार सितम्बर 11, 2019 11:16 AM IST पुरानी-नई किताबों की जिल्द की अलग-सी गंध आज भी पढ़ने का शौक ज़िन्दा रखे हुए है... सो, आप लोगों से अब सिर्फ यही कहना चाहता हूं, खुद भी कुछ न कुछ पढ़ने की आदत डालें, और अपने बच्चों को देखने दें कि आप क्या कर रहे हैं, ताकि वे भी वैसे ही बन सकें... और यकीन मानिए, अगर ऐसा हो पाया, तो हिन्दी की दशा सुधारने के लिए हर साल मनाए जाने वाले हिन्दी दिवस की ज़रूरत नहीं रहेगी...