लगातार कोशिशें की जा रही हैं कि भ्रम पैदा हो कि मजदूरों की समस्याएं खत्म हो गई हैं. पैदल चलते हुए मजदूर नजर नहीं आ रहे हैं लेकिन लाइन में अभी भी मजदूर नजर आ रहे हैं. दिल्ली शहर के भीतर लोग अलग-अलग इलाकों से पैदल चलते हुए यहां से वहां से भागते हुए स्क्रीनिंग सेंटर की तरफ पहुंच रहे हैं. आबादी का एक बड़ा हिस्सा जो सुबह शाम ठीक से खाना खाता था, उसे भोजन नहीं मिल रहा है. भोजन जहां भी मिलता है वह उस पर टूट पड़ता है. मजदूरों की गरिमा को लगातार कुचला जा रहा है.