प्राइम टाइम : क्या सरकार को किसानों की वाकई फ़िक्र है?
प्रकाशित: मई 09, 2018 09:00 PM IST | अवधि: 32:26
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न्यूज़ चैनलों पर नेताओं के भाषणों का अतिक्रमण हो गया है. उनके भाषण झूठ से भरे होते हैं, उन्माद फैलाने वाले होते हैं, मुद्दों से भटकाने वाले होते हैं. इतिहास तो ग़लत होता ही है. दूसरी तरफ आम जनता अपनी अपनी समस्याओं को लेकर लाचार खड़ी है कि कोई उसे आवाज़ दे दे. मध्य प्रदेश में सिपाही की परीक्षा देने वाले छात्र अब गिड़गिड़ाने की स्थिति में आ गए हैं. रो रहे हैं कि कोई उनकी बात सामने रख दे. चुनावों के समय टीवी का इस्तमाल इस तरह से होने लगा है कि आज से कुछ साल बाद आप किताबों में पढ़ेंगे कि कैसे इस माध्यम के इस्तमाल से किस तरह से लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया और जनता के अस्तित्व को ख़त्म कर दिया गया. आखिर एक चुनाव को लेकर आप कितनी बार और कितना सर्वे देखना चाहते हैं. जब सर्वे नहीं होता है तब नेताओं के बयान पर बहस चल रही होती है. जिसमें वही दो चार लोग होते हैं.