17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से एक खाका पेश किया कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए पहले और बाद में पुलिस क्या क्या करेगी. वैसे तो पुलिस के पास पहले से भी पर्याप्त कानूनी अधिकार हैं लेकिन क्या ऐसा हो रहा है. हमारे सहयोगी सौरव शुक्ला और अश्विनी मेहरा ने भीड़ की हिंसा के कुछ आरोपियों से बात की है. पुलिस की किताब में उनकी भूमिका कुछ और है मगर वे खुफिया कैमरे पर अपनी भूमिका कुछ और बताते हैं. मारने की बात भी स्वीकार करते हैं और उनकी बात में से वो ज़हर और नफ़रत भी झलकती है जो उनके दिमाग़ में भर दिया गया है.
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