प्रकाशित: अक्टूबर 31, 2016 09:30 PM IST | अवधि: 7:45
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हवा की हालत ऐसी नहीं है कि इसमें हम सांस ले सके. ऐसी भी बात नहीं कि पहली बार किसी ने हमें नींद से जगाकर ये बात बताई हो. सवाल यही है कि हमारे जानने से क्या हो जाता है. जैसे हम इसी साल जनवरी से लेकर अक्टूबर जाने तक जानते रहे कि दिल्ली की हवा में सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है. आधी-अधूरी योजनाओं को आज़माते रहे लेकिन सब कुछ उसी रफ़्तार से चलता रहा. ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसी साल, बल्कि पिछले कई वर्षों से दिल्ली की हवा की ख़राबी का मसला उठ रहा है, मगर हो कुछ नहीं रहा है.