प्राइम टाइम : कब तक हम अपने सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करते रहेंगे?
प्रकाशित: अक्टूबर 18, 2016 09:00 PM IST | अवधि: 39:22
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सांप्रदायिक हिंसा को हम एक तय फ्रेम में देखने लगे हैं. नतीजा यह होता है कि हम नई घटना को भी पहले हो चुकी घटना समझकर अनदेखा कर देते हैं, क्योंकि ऐसी हर घटना में बहस के जितने भी पहलू हैं, वो लगभग फिक्स हो चुके हैं. हमें अब वाकई चिंता करनी चाहिए कि हम कब तक अपने सामाजिक ताने-बाने को इस तरह कमज़ोर करते रहेंगे. इस राजनीति से सत्ता मिल सकती है, लेकिन यह भी तो पूछिये कि उस सत्ता से आपको क्या मिल रहा है? क्या आपको पड़ोस में झगड़ा चाहिए?