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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: दिल्ली दंगा- विवादों के बहाने घायलों और मारे गए लोगों से नजर हटाने की कोशिश

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दिल्ली दंगों की बहसें बड़ी होने लगी हैं. इन बहसों के लिए खलनायक चुन लिए गए हैं ताकि बैठे-बैठे प्रवक्ताओं के भाषण में जोश आ सके. धीरे-धीरे अब चैनलों से मरने वालों की संख्या भी हटती जा रही है, लेकिन उनके पीछे उनके परिवार वाले अलग-अलग चुनौतियों से जूझ रहे हैं. यूपी के कासगंज के प्रेम सिंह रिक्शा चलाने दिल्ली आए थे. प्रेम सिंह ब्रिजविहार में किराए के मकान में बीवी और तीन बच्चियों के साथ रहते थे. प्रेम सिंह की उम्र 26-27 साल थी. न तो प्रेम सिंह साक्षर थे और न ही उनकी पत्नी साक्षर हैं. प्रेम सिंह की पत्नी के नाम पर बैंक में खाता भी नहीं है. सरकार जो पैसा देगी उसे रखने के लिए बैंक में खाता खुलवाने की कोशिश की जा रही है. प्रेम सिंह के घर का खर्च कैसे चलेगा, क्योंकि सरकार द्वारा दिया जा रहा पैसा तो बहुत कम है. प्रेम सिंह की पत्नी अपनी तीन बेटियों को लेकर किस जीवन यात्रा पर निकलेंगी? इस सवाल का जवाब किसी भी प्रवक्ता के भाषण में नहीं है जो टीवी डिबेट में आरामकुर्सी पर बैठे हैं. दंगों की हिंसा और क्रूरता से बहस ने दूरी बना ली है. कुछ लोग दंगा पीड़ितों की मदद कर रहे हैं. लेकिन दंगों की बहस दंगों से भी ज्यादा क्रूर हो गई है.



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