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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: काम की स्थितियों के विरोध में हड़ताल पर डॉक्टर

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इसमे कोई शक नहीं कि तमाम कमियों के बावजूद सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने ही कोविड-19 के खिलाफ होने वाली लड़ाई का मोर्चा संभाला है. ठीक है कि अस्पताल का सिस्टम लचर है कई तरह की शिकायतें हैं. नर्स कम हैं, लैब टेक्नीशियन कम हैं, सफाई कर्मी कम हैं, स्टाफ की संख्या बहुत ही कम है. इसके बाद भी इन स्वास्थ्य कर्मियों को बचने का कोई रास्ता नहीं था उन्हें अपने काम पर आना ही पड़ता था. अब ऐसे में ये सुनने को मिले कि इन्हें तीन महीने से वेतन नहीं मिल रहा है, सुनकर अच्छा नहीं लगता है. जिन डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को हमने कोरोना योद्धा बताया है उन्हें य़े शिकायत करनी पड़ जाए की ढंग की PPE किट उपलब्ध नहीं है सुरक्षा के इंतजाम नहीं है तो फिर कोरोना योद्धा क्यों कहा गया? क्या हम लड़ाई के नाम पर हवा में ही तरवारे भांज रहे हैं. सिर्फ डॉक्टर ही नहीं आशा कर्मी भी बिना वेतन और अन्य सुविधाओं के अभाव में परेशान हैं.



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