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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: अहमदाबाद में नकली वेंटिलेटर की सप्लाई का खेल और बंगाल की तबाही

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दिल्ली वालों को अक्सर ऐसा लगता होगा कि वे किसी चक्रवाती तूफान जैसी किसी चीज के साये से हमेशा हमेशा के लिए महफूज हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. मशहूर लेखक अमिताभ घोष ने अपनी किताब 'द ग्रेट डिरेंजमेंट' में एक वाकिया लिखा है, इस वाकिए के अनुसार 1978 का साल था और मार्च के महीने का दिन था. अमिताभ घोष दिल्ली के मौरिस नगर इलाके से गुजर रहे थे. उन्होंने देखा कि अचानक आसमान में धुंध के बादल बन गए हैं और बवंडर सा उठा है. विचित्र और तेज किस्म की आवाजें चारों तरफ गूंज रही हैं. वो अपने आपको किसी सुरक्षित जगह पर छिपा लेते हैं और देखते हैं कि साइकिलें, स्कूटर और दुकानें हवा में उड़ रहीं थी. इतना घना और भयंकर बवंडर था. इस घटना में 30 लोगों की मौत हो गई थी और 700 घायल हो गए थे. यह बवंडर पूरी दिल्ली में नहीं बल्कि सिर्फ उत्तरी दिल्ली में आया था. बाद में पता चला कि वह एक टोरनेडो था. लेखक कहना चाहते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं अप्रत्याशित नहीं हैं बल्कि हमारा उनको भूल जाना अप्रत्याशित है.



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