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रवीश कुमार का प्राइम टाइम : कोरोना को लेकर जागरूकता क्यों नहीं आ रही?

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कोविड को लेकर हर दिन नए-नए रिसर्च आ रहे हैं. पता नहीं अभी तक कोविड को लेकर बने कॉलर ट्यून पर कोई रिसर्च क्यों नहीं आया है. आप इस कॉलर ट्यून को टॉर्चर ट्यून कहने की जल्दी न करें. पहले बात सुन लें. सटीक आंकड़े नहीं हैं. अंदाज़े से कह रहा हूं. दिन भर में करोड़ों लोग फोन पर बात करते होंगे. करोड़ों लोग दिन में कई बार बात करते होंगे. कोरोना से बचाव के लिए क्या करना है, हेल्पलाइन नंबर क्या है. तो फिर जागरुकता आ क्यों नहीं रही है. कई लोग नंबर मिलाने के बाद इंतज़ार कर रहे हैं कि कॉलर ट्यून कब खत्म होगा और मास्क नाक से नीचे भी है जबकि वही सुन रहे हैं कि मास्क कैसे पहनना है. कई बार लगता है कि कॉलर ट्यून को लेकर रिसर्च होता तो यह निष्कर्ष निकल आता कि जागरुकता चाहे जैसे आती हो, कानों के रास्ते नहीं आती है. कॉलर ट्यून से नहीं आती है. वैसे यह तरीका मुझे तो शानदार लग लेकिन जो नज़ारा आस-पास दिख रहा है लग नहीं है कि हर बार फोन करने पर हम जो चंद सेकेंड की कुर्बानी दे रहे हैं उसका कोई नतीजा निकल रहा है.



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